पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४९६

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सत्यार्थप्रकाशः ।। के पानियों को आकाश के ऊपर के पानियों से विभाग किया और ऐसा होगया । और ईश्वर ने आकाश को स्वर्ग कहो और सांझ और विहान दूसरा दिन हुआ | पर्व १ । ० ६ । ७. ८ ॥ समीक्षक-क्या आकाश और जलने भी इश्वर की बात सुन ली ? और जो जल के बीच में प्रकाश न होता तो जल रहता ही कहां १ प्रथम आयत में - काश को सजा था पुनः आकाश का बनाना व्यर्थ हुआ। जो आकाश को स्वर्ग कह। तो वह सर्वव्यापक है इसलिये सर्वत्र स्वर्ग हुअा फिर ऊपरे को स्वर्ग है यह कहना व्यर्थ है। जब सूर्य उत्पन्न ही नहीं हुआ था तो पुनः दिन और रात कहां से होगई ऐवी असम्भव बातें अगे की आयतों में भरी हैं ॥ ३ ॥ ४-तुब ईश्वर ने कहा कि हम आदम को अपने स्वरूप में अपने समान । बनावें । तब ईश्वर ने आदम को अपने स्वरूप में उत्पन्न किया उसने उसे ईश्वर ! के स्वरूप में उत्पन्न किया उसने उन्हें नर और नारी बनाया । और ईश्वर ने उन्हें । आशीप दियः ।। पर्व १ । ० २६ । २७ । २८ ॥ समीक्षक-यदि अदुम को ईश्वर ने अपने स्वरूप में बनाया तो ईश्वर का स्वरूप । पवित्र, ज्ञानवरूप, आनन्दमय आदि लक्षणयुक्त हैं उसके सदृश भाम क्यों नहीं हुई। जो नहीं हुआ तो उसके स्वरूप में नहीं बना और आदम को उत्पन्न किया तो ईश्वर ने अपने स्वरूप ही को उत्पत्तिवाला किया पुनः वह अनित्य क्यों नहीं ? और आदम को उत्पन्न कहां से किया ? ( ईसाई ) मट्टी से बनाया । ( समीक्षक ) मट्टी का से बनाई ? ( ईसाई ) अपनी कुदरत अर्थात् सामथ्र्य से। ( समीक्षक ) ईश्वर का सामर्थ्य अनादि है वा नवीन १ ( ईसाई ) अनादि है । ( समीक्षक ) जब भनाई है तो जगत् का कारण सनातन हुआ फिर अभाव से भाव क्यों मानते हो ? (ईसाई) सृष्टि के पूर्व ईश्वर के विना कोई वस्तु नहीं थी। (समीक्षक ) जो नहीं थी तो यह जगत् | कहां से बना है और ईश्वर का सामथ्र्य द्रव्य है वह गुण ? जो द्रव्य है तो ईश्वर से भिन्न दुसरा पदार्थ था और जे गुण है तो गुण से द्रव्य कभी नहीं बन सकता जप्त रूप से अग्नि मोर रस से जल नहीं बन सकता और जो ईश्वर से जगन् बना होता तो ईश्वर के सदृश गुण, कर्म, वैभवला होता, उसके गुण, कर्म, स्वभाव ' सहज न होने से यह निश्चय है कि ईश्वर से नहीं बना किन्तु जगत् के कार | अन् पनागु भादि नानवाने जड से रना है, जैसा कि अगत् की उत्पत्ति वे!