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त्रयोदशसमुवासः । शास्त्रों में लिखी है वैसी ही मान लो जिससे ईश्वर जगत् को बनाता है, जो आदम के भीतर का स्वरूप जीव और बाहर का मनुष्य के सदृश है तो वैसा ईश्वर का स्वरूप क्यों नहीं है क्योंकि जब आदम ईश्वर के सदृश बना तो ईश्वर आदम के सदृश अवश्य होना चाहिये ।। ४ ।। । ५-तब परमेश्वर ईश्वर ने भूमि की धूल से आदम को बनाया और उसके नथुनों . में जीवन का श्वास फेंका और आदम जीवता प्राण हुआ है और परमेश्वर ईश्वर ।। ने अदन में पूर्व की ओर एक बारी लगाई और उस आदम को जिसे उसने बनाया। था उसमें रक्खा । और इस बारी के मध्य में जीवन का पेड़ और भले बुरे के ज्ञान ।' का पेड़ भूमि से उगाया ।। पर्व २ । आ० ७ } ८ । ९ ।।। समीक्षक---जब ईश्वर ने अदन में बाड़ी बनाकर उसमें दम को रक्खा तब ईश्वर नहीं जानता था कि इसको पुनः यहां से निकालना पड़ेगा ? और जब ईश्वर ने आदम को धूली से बनाया तो ईश्वर का स्वरूप नहीं हुआ और जो है तो ईश्वर भी धूनी से बना होगा ? जब उसके नथुनों में ईश्वर ने श्वास फेंका तो वह श्वास ईश्वर का स्वरूप था वा भिन्न ? जो भिन्न था तो ईश्वर आदम के स्वरूप में नहीं बना जो एक है तो आदम और ईश्वर एक से हुए और जो एक से हैं तो आदम के सदृश जन्म, मरण, वृद्धि, क्षय, क्षुधा, तृषा मादि दोष ईश्वर में आये, फिर वह ईश्वर क्योंकर हो सकता है ? इसलिये यह तौरेत की बात ठीक नहीं विदित होती और यह ', पुस्तक भी ईश्वरकृत नहीं है ॥ ५ ॥ | ६----और परमेश्वर ईश्वर ने अदम को बड़ी नींद में डाला और वह सोगया तव ।। उसने उसकी पसलियों में से एक पसली निकाली और उसकी सन्ति मास भर दिया और परमेश्वर ईश्वर ने आदम की उसपसली से एक नारी बनाई और उसे , आदम के पास लाया । पर्व २ । अ० २१ । २२ ।। समीक्षक-जो ईश्वर ने अदम को धूली से बनाया तो उसकी स्त्री को धूली से । क्यों नहीं बनाया ? और जो नारी को इडु से बनाया तो आदम को इट्टी से क्यों । नहीं बनाया ? और जैसे नरसे निकलने से नारी नाम हुआ तो नारीसे नर नाम भी होना चाहिये और उनमे परस्पर प्रेम भी रहे जैसे स्त्री के साथ पुरुष प्रेम करे वैसे पुरुष के साथ स्त्री भी प्रेम करे । देखो विद्वान् लोगो ! ईश्वर की कैसी पदार्थविद्या , ' अर्थात् 'फिलासफी चिलकती है ! जो आदम की एक पसली निकाल कर नारी बनाई तो सव मनुष्यों की एक पसली कम क्यों नहीं होती है और स्त्री के शरीर में एक