पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५००

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४९८ सत्यार्थप्रकाशः ।। जो चारों ओर घूमते थे, लिये हुए ठहराये जिनसे जीवन के पेड़ के मार्ग की रखवाली करें ।। पर्व ३ । अ० २२ । २४ ॥ समीक्षक---अला ! ईश्वर को ऐसी ईष्र्या और भ्रम क्यों हुआ कि ज्ञान में हमारे तुल्य हुआ ? क्या यह बुरी बात हुई ? यह शङ्का ही क्यें पड़ी ? क्योंकि ईश्वर के तुल्य कभी कोई नहीं हो सकता परन्तु इस लेख से यह भी सिद्ध हो सकता है कि वह ईश्वर नहीं था किन्तु मनुष्य विशेष था, बाइवल में जहां कहीं ईश्वर की बात आती है वहां मनुष्य के तुल्य ही लिखी जाती है, अब देखे | आदम के ज्ञान की बढ़ती में ईश्वर कितना दुःखी हुआ और फिर अमर वृक्ष के फल खाने में कितनी ईष्र्या की, और प्रथम जब उसको बारी में रक्खा तब उसको भविष्यत् का ज्ञान नहीं था। इधको पुनः निकालना पड़ेगा इसलिय ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ नहीं था और चमकते खड़ग का पहिरा रक्खा यह भी मनुष्य का काम है ईश्वर का नहीं ॥ ८ ॥ ९ और कितने दिनों के पीछे यों हुआ कि काइन भूमि के फलों में से परमेश्वर के लिये भेट लाया ।। और हाबील भी अपनी कुड * में से पहिलौठी और मोटी २ । भेड़ लाया और परमेश्वर ने हाबील और उसकी भेट का आदर किया परन्तु काइने का उसकी भेट का आदर न किया इसलिये काइन अतिकुपित हुआ और अपना । मुइ फुलाया । तब परमेश्वर ने काइन से कहा कि तू क्यों क्रुद्ध है और तेरा मुई । क्यों फूल गया ॥ तौ० पर्व ४ । ० ३ । ४ । ५ । ६ ॥ समीक्षक--यदि ईश्वर मांसाहारी न होता तो भेड़ की भेद और हाबील की सत्कार और काइन का तथा उसकी भेट का तिरस्कार क्यों करता है और ऐसा । झगड़ा लगाने और हावील के मृत्यु का कारण भी ईश्वर ही हुआ और जैसे आपस में मनुष्य लोग एक दूसरे से बातें करते हैं वैसे ही ईसाइयों के ईश्वर की बात है बगीचे में आना जाना उसका बनाना भी मनुष्यों का कर्म है इससे विदित होती है कि यह वाइबल मनुष्यों की बनाई है ईश्वर की नहीं ।। ६ ।। १०---जब परमेश्वर ने काइन से कहा तेरा भाई हाबिल कहां हैं और वह बोला मैं नहीं जानता क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ | तब उसने कहा तूने क्या किया तेरे भाई के लेहू का शव्द भूमि से मुझे पुकारता है । और अब ३ पथिवी से स्रावित है ।। तौ० पर्व० ४ | ० है । १० । ११ ।। । * भेड़ बकरियों के झुंड }