पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५०८

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| सत्यार्थप्रकाश, ।।

उसको जलाना अच्छी बात नहीं और गाड़ना जैसा कि उसको सुला देना है इसलिये गाड़ना अच्छा है । ( उत्तर ) जो मृतक से प्रीतिं करते हो तो अपने घर में क्यों नहीं रखते ? और गाड़ते भी क्यों हो ? जिस जीवात्मा से प्रीति थी वह निकल गया भव दुर्गन्धमय मट्टी से क्या प्रीति है और जो प्रीति करते हो तो उसको प्रथिवी में क्यों गाड़ते हो क्योंकि किसी से कोई कहे कि तुझ को भूमि में गाड़ देवें तो वह सुनकर प्रसन्न कभी नहीं होता उसके मुख भांख और शरीर पर धूल, पत्थर, ईट, चूना - लना, छाती पर पत्थर रखना कौनसी प्रीति का काम है ? और सन्दूक में डालके गाड़ने से बहुत दुर्गन्ध होकर पृथिवी से निकल वायु को बिगाड़ कर दारुण रोगोत्पत्ति करता है दूसरा एक मु’ के लिये कम से कम ६ हाथ लम्बी और 2 हाथ चौड़ी भूमि चाहिये इस हिसाब से पौ हज़ार बा लाख अथवा क्रोड़ो मनुष्यों के लिये कितनी भूमि व्यर्थं रुक जाती है न वह खेत, न बागीचा और न बसने के काम को रहती है इसलिये सब से बुरा गाड़ना है, उससे कुछ थोड़ा बुरा जल में डालना क्योंकि उसको जल जन्तु उसी समय चीर फाड़ के खा लेते हैं परन्तु जो कुछ होड़ वा मल जल में रहेगी वह सड़कर जगत् को दु:खदायक होगा उससे कुछ एक थोड़ा बुरा जङ्गल में छोड़ना है क्योंकि उसको मांसाहारी पशु पक्षी लंच खायगे तथापि जो उसके हाड़ की मज्ज' और मल सड़कर जितना दुर्गन्ध करेगा सतना जगत् का अनुपकार होगा और जो जलाना है वह सर्वोत्तम है क्योंकि उस के सब पदार्थ अणु होकर वायु में उड़ जायेंगे। ( प्रश्न) जलाने से भी दुर्गन्ध होती है। उत्तर ) जो प्रविधि से जलावें तो थोडासा होता है परन्तु गाड़ने आदि से बहुत कम होता है और जो विधिपूर्वक जैसा कि वेद में लिखा है मुर्दे के तीन हाथ गहरी, सह तीन हाथ चौकी, पांच हाथ लम्धी, वले में डेढ़ बीता अर्थात् चढ उतार वेदी खोदकर शरीर के बराबर घी उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, मासा भर केशर डाल न्यून से न्यून अधमन चन्दन अधिक चाहे जितना ले अगर तगर कपूर आदि अर पलाश मादि की लकड़ियों को वेदी में जमा उस पर 'मुर्दा रख के पुनः चारा भार ऊपर वेदी के मुख से एक २ बीता तक भरके घी की माहुति देकर जाना चा" दिय इस प्रकार से दाह करें तो कुछ भी दर्गन्ध न हो किन्तु इसी का नाम अन्य। नरभघ, पुरुषमेध यक्ष है और जो दरिद्र हो तो यीस सेर से कम घी चिता में " हाल चाहे वह भीख मांगने वा जाति वाले के देने अथवा राज से मिलने से प्राप्त | परन्तु उम्र प्रकार दाइ करे और जो वृतादि किसी प्रकार ने मिल सके तथापा "