पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५१०

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सत्यथाश: !

स्थान का नाम वैतएछ रक्खा ॥ और यह पत्थर जो मैंने खम्भा खड़ा किया ई- श्वर का घर होगा ।l तौ० उत्प ० पर्व २८। आ6 १८ । १३ । २२ | समीक्षक—अब देखिये !जड़ लियों के काम, इन्हीं ने पत्थर पूजे और पुजवाये और इसको सुसलमान लोग ‘वयतट द स" कहते हैं क्या यही पत्थर ईश्वर का घर और सी पत्थरमान में ईश्वर रहता था ? वाहू ! वाह !! जी क्या - इना है, ईसाई लोगों ! सहाबुपरस्त तो तुम्हीं हो ॥ ३१ ॥ ३२ और ईश्वर ने राखिल को स्मरण किया और ईश्वर ने उसकी सुनी और उसकी कोख को खोला और वह गर्मिणी हुई और बेट जनी और बोलीं कि ईश्वर मेरी निन्दा दूर किई ॥ तौ० उत्प ० पर्व ३० । आ० २२। समीक्षक -ईसाइयों के ईश्वर क्या वड़ा डाक्कर है स्त्रियों की को खोलने को नये शक वा औषध थे जिनसे खोली ये सब बातें अन्धाधुन्ध की हैं ! ३ ३३-परन्तु ईश्वर आरमी लावन ने स्वप्न में रात को आया —और उसे कहा कि चौकस रहू तू ईश्वर य अकूब को भला बुरा मत कहूं, क्योंकि अपने पिता के घर का निपट अभिलाषी है तूने किसलिये मेरे देवों को चुराया है ॥ दौ• उत्प’ पने ३१ t आ० २४ t ३० I क्ष—यह हम नमूना लिखते हैं हज़ारों मनुष्यों को स्वप्न में माया,बात , जाट साक्षात् मिला, खाया, पिया, आयागया आदि बाइबल में लि परन्तु अब न जाने वह है या नहीं है क्योंकि अब किसी को स्वप्न व जाठ में भा श्वर नहीं मिलता और यह भी विदित हुआा कि ये जंगली लग पायणrदि मू। को देव मानकर पूजवे थे परन्ड ईसाइयों का ईश्वरभी पत्थर ही को देव माना नहीं तो देवी का पुराना कैसे घटे ? ॥ ३३ ! ३४-और यशव अपने मार्ग चला गया और ईश्वर के दूत उसे अमिले और यअब ने उन्हें देख के कहा कि यह ईश्वर की खेना है । तौ० ठप० पत्र ३२ 1 मा १ १ २ 1! समीक्ष---अब ईसाइयों के ईश्वर के मनुष्य होने में कुछ भी संदिग्ध नहीं रा ककि ना भी रखता है जब सेना हुई वश शछ भी होंगे और जहां तहां व स्तर के लाई भी करता होगा नहीं तो सेना रखने का क्या प्रयोजन हे? (