पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२

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तथिसमुल्लासः । --



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९ को ३ से जितना दुर्गन्ध उत्पन्न हो के वायु और जल को त्रिगाड़ कर रोगोत्पत्ति का निमित्त होने से प्राणियो को दु:ख प्राप्त करता है उतना ही पाप उस लक्ष्य को होता है। इसलिये उस पाप के निवारणार्थी उतना सुगन्ध वा उसे अधिक वायु और जल मे फैलाना चाहिये । और खिलाने पिलाने से उसी एक व्यक्ति को सुखविशेष होता है जितना घत और सुगन्धादि पदार्थ एक मनुष्य खाता है उतने द्रव्य के होम से ला अनुष्यो का उपकार होता है परन्तु जो मनुष्य लोग घतादि उत्तम पदार्थ न खावे तो उनके शरीर और आत्मा के बल की उन्नति न होस इससे अच्छे पिलाना भी चाहिये करना है इस . पदार्थ खिलाना परन्तु उससे होम अधिक उचित लिये होम करना अत्यावश्यक है । ( प्रश्न ) प्रत्येक मनुष्य कितनी आहुति करे और एक २ आहुति का कितना परिमाण है ' (उत्तर ) प्रत्येक मनुष्य को सोलह२ आहुत्ति और छ: २ माश घृतादि एक २ आहुति का परिमाण न्यून से न्यून चहिये जो इससे अधिक तो अच्छा है । इसलिये आयेंबरशिरो

ाोर कर बहुत

मणि महाशय ऋपि, महर्षि, राजेमहराजे लोग बहुतसा होम करते और करते थे । जबतक इस होम करने का प्रचार रहा तबतक आयोवत्से देश रोगों से रहित और सुखों से पूरित था, अब भी प्रचार हो तो वैसा ही हो जाय । ये दो यज्ञ अनू एक त्रह्मयज्ञ जो पढ़ना पढाना सयोपासन ईश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना करना। । दूसरा देवयज्ञ जो अग्निहोत्र से ले के अश्वमेध पर्यन्त यज्ञ और विद्वामो की सेवा सग करना परन्तु वहचय म केवल त्रiय और अग्निहोत्र का हा करना होता है । ' ब्राह्मणल्जयां वर्णालामुफ्लयरें कठुमति । राजन्यो द्वपस्य । वैश्यो वैश्यस्पेवेति । शूनमपि कुलगुणसम्पन्नै लल्लन वजेमनुषोत्तमध्यपयों के ॥ यह सुझूत के रसूत्रस्थान के दूसरे अध्याय का वचन है । त्राह्मण तीनों वर्ण , क्षत्रिय और वैश्य, क्षत्रिय क्षत्रिय और वैश्य तथा वैश्य एक वैश्य वर्ण शद्र तो का यज्ञोपवीत कराके पढा सकता है । और जो कुलीन शुभलक्ष्णयुक्त हटे ! उसको मन्त्रसंहिता छोड के सव शनि पढ़ाखे, शूद्र पहे परन्तु उसका उपनयन न करे! यद मत अनेक आचार्यों का है । पश्चात् पाचवें व आठवे वर्ष से लड़के लडको की ) पठशाला मे और लडकी लडकियो की पाठशाला में जई । और निम्नलिखित नियमपूर्व अ ययन का आरम्भ कर ।