पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५ २ सत्यार्थप्रकाशः ॥ ६३-०तब यीशु सारे गाली देश में उनकी सभाओं में उपदेश करता हुआ और राज्य का समाचार प्रचार करता हुआ और लोगों में हरएक रोग और हर व्याधि को चझा करता था फिर किया । सब रोगियों को जो नाना प्रकार के रोगों के पर पीड़ाओं से दु:खी थे और भूनों और मृ'ीवाले और अद्धलियों को उस पाव काये और उसने चझना किया ॥ ई० म० प० ४। अ० २३ । २४। २५ ॥ खमीत कजैसे आजकल पोपलीला निकालने मन्त्र पुरश्चरण नाशीदव बीज और भस्म की चुटु की देने से भूतों को निकालना रो को ाना न था हो तो वह इजील की बात भी सच्ची होवे इस कारण भोले मनुष्यों को भ्रम में फंसाने के लिये ये बातें हैं जो ईसाई लोग ईसा की बातों को मानते हैं तो यहां के देवी की भाप बातें क्यों क्hकि वे बातें इन्हीं के श हैं ॥ ६३ ॥ नहीं मानने १ ६४-धन्य वे जो मन में दीम हैं कि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है क्योंकि में तुम से स्वच क ता हूं कि जब लों आकाश और पृथिवी टल न जायें तबत व्यवस्था से 1 एक मात्रा अथवा एफ विन्दु बि मा पूरा हुए नहीं टलेगा । इसलिये इन मति छोटी अज्ञों में से एक तो तोप करे और लोगों को वैसे ही सिखावे वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कावेगा । ई० मची० ५० १५ से २० ३ । ४ । १८। १६ ॥ समीक्षक जो स्वर्ग एक है तो राजा भी एक होना चाहिये इसलिये जितने दीिन हैं वे सब स्वर्ग को जावेंगे वो स्वर्ग में राज्य का अधिकार किस तो होगा अत् पर पर ज ाई भिड़ाई करेंगे और राज्यव्यवस्था खण्ड बण्ड हो जायगी और दीन से कहने से जो गले लगे तब तो ठीक नहीं, जो निरभिमानी लगे तो भी ठीक न। क्योंकि दीन और अभिमान का एकार्य नहीं किन्तु जो मन में दीन होता है उसका न्तोष कभी नहीं होता इसलिये यह बात ठीक नहीं । जब आकाश पृथ्वी टतजायें तब व्यवस्था भी टल जायगी ऐसी अनिरय व्यवस्था मनुष्यों की होती है सप ईश्वर की नहीं और यह एक प्रलोभन और भयमान दिया है कि जो इन आशाओं क्रो न मानेगा स्वर्ग में खव से छोटा गिना जायगा : ६४ ॥ ६५-मारी दिन भर की रोटी आज हमें दे । अपने लिये ७ थी पर धन का चय मत करो : ई० म • प०.६ । अ० ११ । १६ ॥ समीक्षक-पेंच से विदित होता है कि जिस समय ईसा का जन्म हुआ है उस समय लोग जइली और दरिद्र थे तथा ईसा भी वैसाही दरिद्र था प्राप्ति के लिये ईश्वर की प्रार्थना करता और सिखलाता है इसे तो दिनभर की रोकी ।जब ऐसा है तो ईसाई लोग भन।