पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२५

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यदिशखमुकदr: ५२३ संचय क्यों करते हैं उनको चाहिये किईसा के वचन से विरुद्ध न चलकर ब दान पुण्य करके दीन हजायें ॥ ६५ ॥ ६६हरएक जो मुझसे हे प्रभुड २ कहता है स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा : ई० म० प ० ७ । आ० २१ ॥ समीक्षक-अब विचारिये बड़े २ पादरी विशष साहेब और कृश्वन लोग जो यह ईसा का बचन सत्य है ऐसा समझे तो ईसा को प्रभु अर्थात् ईश्वर कभी न कहें, यदि इस बात को न मानेंगे तो पाप से कभी नहीं बन सकेंगे ॥ ६६ ॥ ६७-उस दिन में बहुतेरे मु से कहेंगे तब मैं उनखे खोल से कहूंगा मैंने सुम को कभी नहीं जाना है कुकर्म करनेहारे मुझसे दूर हो 7 ई० से ७ प• ७ । आ० २२ । २२ !! समीक्षक-खिये ईसा जंगली मनुकों को विश्वास करने के लिये स्वर्ग में न्याया धीश बनना चाहता था, यद केवल भाव मनुष्यों को प्रलोभन देने की ।त है ।I ६७ ॥ . " ६८-छोर दो एक कोने में अा उसको प्रणाम कर का दै नमू : जो आ!प चाहूं तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं, यीशुछ ने ाथ बढ़। उसे छू के कहा मैं तो चाहता हूं शुद्ध हो जा ओर उसकाकोढ़ तुरन्त शुद्ध होगया ।। ई० म॰ प० = आ० २। ३ ॥ समीक्षकये सब बातें भोले मनुष्यों के फंसाने की हैं क्योंकि जब ईसाई लोग इन विद्या, तुष्टिक्रमविरुद्ध बातों को साक्ष्य मानते हैं तो शुक्राचार्यधन्वन्तरि, . श्यप आदि की बातें जो पुराण और भारत में अनेक दैत्यों की मरी हुई सेना को जिला दी, पति के पुत्र कच को टुकड़ा २ कर जानवर और मच्छियों को स्लिा दिया, फिर भी शुक्राचार्य ने जीता कर दिया पश्चात् कच को मारकर शुक्राचार्य को खिला दिया फिर भी उसको पेट में जीत कर बाहर निकाला आइप मर गया म को इचव ने जीता किया, कश्यप ऋषि ने मनुष्य सहित क्षेत्र को तक्षक से भम हुए पीछे पुनः वृक्ष और मनुष्य को जिला दिया धन्वन्तरि ने लाखों रुई जिलाधे, ल।सों फोढ़ी दि रोगियों को चंद iयालाई अन्ष आtर मi६त कr i tर कान दिखे। कथा को मिथ्या क्यों कहते हैं ? जो उक्त बातें मिथ्या हैं तो ईस गई १ ब।ि इधे नहीं जो दूसरे की बात को मिथ्या और अपनी बेटी को प्रय भूट कर 5' क्यों नहीं है इसलिये ईसाइयों की बातें केवल ठ और लऋटिया क्षों न नti ?