पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२७

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त्रयोदशसमुला: ! ५२५ ड ७१-यीशु ने अपने १२ शिष्यों को अपने पास बुला के उद्दे आशुद्ध भूतों पर अधिकार दिया कि उन्हें निकालें और हरएक रोग और हर व्याधि को चझा करें । बो ,ल नेहरे तो तुम नही हो परन्तु तुम्हारे पिता का आारमा तुम में बोलता है। मत च- मझो कि मैं थिवी पर मिलाप करवाने को, नहीं, परन्तु खड्ग चलवाने को आया हूं । मैं मनुष्य को उसके पिता से और बेटी को उसकी मा से और पतोहू को उस- की सास से अलग करने आया हूं । मनुष्य के घर के लोग उसे वेश It ई० म० प० १० । आ ० १३ । ३४ । ३५ । ३६ ॥ समीक्षक-ये ही शिक्ष्य हैं जिनमें से एक ३०) तीख रु० के लोभ पर ईसा को पकड़ावेगा और अन्य बदल कर अलग २ भागेंगे, भला ये बातें जब विद्या ही से 'विरुद्ध हैं कि ‘भूतों का आ।ना वा निकालना, बिना आषाधि वा पथ्य के व्याधियों का छटा सष्टक्रम से असम्भव है इसलिये ऐसी २ बातों का मानना आक्रानियों का काम है, यदि जीव बोलनेहारे नहीं ईश्वर बोल नेहारा है तो जीव क्या काम करते हैं ? और समय वा मियाभाषण के फल सुख व दुःख को ईश्वर ही भगता होगा यह भी एक मिथ्या बात है । और जैसा ईसा फूट कराने और लड़ाने को आया था वही आजकल कलइ लोगों में चल रहा है, यह कैसी बडी बुरी बात है कि फूट करने से सर्वथा मनुष्यों को दुःख होता हूं और ईसाइयों ने इसी को गुरुमंत्र समझ लिया होगा। क्योंकि एक दूसरे की फूट ईसा ही अच्छी मानता था तो यह क्यों नहीं मानते होंगे । ? यह ईसा ी का काम होगा कि घर के लोगों के शत्रु घर के लोगों को बनान, यद श्रेष्ठ पुरुप का कम नहीं ॥ ७१ ॥ ७२-तब यीशु ने उनसे कहा तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं उन्होंने फंदा सात और छोटी मछलिया तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी तब उसने उन सात रोटियों को और मछलियों को धन्य मान के तहत अगर अपने शिष्यों को दिया और शिष्यों ने लोगों को दिया ो सय ख। तृप्त हुए और जो टुकडे य रहे उनके त टोकरे भरे उठाये जिन्होंने खाया ो नियों और बालों को छोड चार सहस्त्र पुरुष थे ॥ ई० स० प० १५५ आई- ३४ : ३५ से ३६ । ३७ 1 ३८ | ३९ ॥ समीक-अब देखिये ! क्या यह आ ।जकल के कुछ सिन्हें आर इतालीं 'प्र। के सात छल की बात नहीं हैं ? उन रोटियों में अन्य रोटियां पा से मतगई ? यदि ईसा में ऐसी सिद्धिया हां तो आरोप भूख हुआ। गूलर के फल देने को क्यों भटकत करता था, अपने लिये भिट्ठी, पानी और पर आदि डे मोइनभग रोटिया ऐों न बता ?