पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२९

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नयट्समुल्लाद | ५२७ हैं । भूतलों को चझा कहना भी आल ती, अज्ञानी, विषयी और भ्रान्तों को बोध क• रके सचेत कु ल किया होगा जो ऐसा मानें तो भी ठीक नहीं क्योंकि जो ऐसा होता तो स्वशिों को ऐसा क्यों न कर सकता १ इसलिये असम्भव बात कहता ईसाही अज्ञानखा का प्रकाश करना है भला जो कुछ भी ईसा में विद्या होती तो ऐसी अटांटूट जंगलीपन की बात क्यों कह देता है तथापि ( निरस्तपादपे देश एर पडोषि ढायते ) जै वे-देश में कोई भी दृक्ष न हो तो उस देश में एस् ण्ड का वृक्ष ही सत्र से बड़ा और अच्छा गिना जाता है वैसे महाजइली अविद्वानों के देश में ईसाका भी होना ठीक था पर आजकल इसकी क्या गणना हो सकती है ? ७४ ७५-मैं तुम्हें स्वच कहता हूं जो तुम मन न फिराओ और बालकों के समान म हो जाओो सो स्वरों के राज्य में प्रवेश करने पाओगे ॥ ३० म ० प० १८ । आ० ३ ॥ समीक्षक-जब अपनी ही इच्छा से मन का फिरना स्वर्ग का कारण और न फिराना नरक का कारण है तो कोई किसी का पाप पुण्य कभी नहीं ले स कता ए . एसा कैसे होता ई आर बालक क समान होने के जख से यd iवदेत देता के ईस की बातें विद्या और स्मृष्टिक्रम से बहुतली विरुद्ध थीं और यहू भी उसके सन ए . में था कि लोग मेरी बातों को बाल के समान माननेपुंछ गIछ कुछ भी नहीं, आंख मीच के समान लेवें बहुत साइयों की बाबुद्धिवन चेष्टा है नहीं तो ऐसी युक्कि विद्याले विरुद्ध बातें क्यों मानते १ और यह भी सिद्ध हुआ जो ईवा आप विद्याहीन बातवृद्धि न होता तो अन्य को बावत् बनने का उपदश क्यों करा ? क्योंकि जो जै न सा होता है वह दूसरे को भी अपने 3 दृश बनाना चाहता ईो है ।॥ ७५ । ॥ ७६-—मैं तुम से स्वच कहता हूं धनवानों को स्वर्ग के एय में प्रवेश करना कiठन होगा फिर भी मैं तुम से कहता हूं कि ईश्वर के राज्य में धनवा क र्षवश कर स स ‘ऊंट का सूई के नाके में ले जाना 8इज है ॥ ई० म ० प० १९ : प० २३ ।२४ है। , - समेंrक्षइसस य६ पद्ध ६ता है 1 इस दtर द्र या धनवान तारा न प्रतिष्ठा नहीं करते होंगे इसलिये यह लिखा होगा परन्तु यह बात सच नहीं दयtiी ।

। थे । - " धनाढयां र दरिद्रों में अच्छे बुरें ांत ६ जा कतई अच्छा काम कर ६ ' jt और बुर करे वह बुरा फल पाता है और इ प से यह भt सिद्ध होता है कि ईमt ईश्वर का राज्य कि एक देश में मानतt थ' में न न हूं। ज व एस ई dt ३३ ६ चर ही नहीं जो देवर के स फ राज्य सदन पुन: उम्र में ३रा करगा वा ।