पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५३१

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त्रयोदश समुनाव: ॥ ५२है ७८-- शोर को जब बहस घर को फिर जाता था तब उसको भूख लगी और ९ ५

माओं में एक गूलर का वृक्ष देव व उस स आया परन्तु उसमें और कुछ न पाया केवल पते और उसको कहा तुझ में फिर कभी फल न लगग इस पर गूलर । का पेड तुरन्त रा सूख गया ॥ इ० स० प० २१ । आ० १८। १६ ॥ समीक्षक-सब पाद लोग इसाई कहते हैं कि वह बहुत शान्त कुमाtन्वत और क्रोधादि दोषरहित था परन्तु इस बात को देखने से ज्ञात होता है कि के ईसा क्रोधी और ऋतु के ज्ञातरहित था और वह जबूती मनुष्यपन के स्वभावयुक्त बलखा था, भला जो वृक्ष जड़ पदार्थ है उसका क्या अपराध था कि उसको शाप दिया और वह सूख गयाइके शाप से तो न हवा होगा किन्तु कोई ऐसी औषधि डालने से सूख गया हो तो आश्चर्य नहीं Il ७८ ॥ ७६-त व ज्ञ के पांछ तुरन्त सूय आधार जायगा अगर चांद ! आपनी ज्योति न देगा तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की सेना डिग जा | यगी : इ० स० प० २४ । आr० २९ ॥ समक्षक-बाजी इस 'तारों को किस विद्या से गोरपड़न छापने जाना और आकाश की सेना कौनसी है जो डिग जायगी १ जो कभी ई सा थोड़ी भी विद्या पढ़ता तो अवश्य जान लेता कि के ये सारे सब भूगोल हैं क्योंकर गिरेंगे इस द विदित होता है के इसा व हरे के कुल में उत्पन्न हुआ या संद के हें चोर न, छiलना, कटना भर ? जोड़ करता रहा होगा जज तर उठी के मैं भी इस जड़ी देश में पराम्हर हो । सऊंगा बातें करने लगा, कितनी बातें उच्च के मुख से अट ली भी निकल चोर यह तली ी, वहां के लोग जर्दाली थे मान बैठे, जैसा आज ल यू (प देश उन्नतियुक्त है वैसा पूर्व होता तो इपफी सिद्धाई कुछ भी न चलती थब कुछ iघर हुए पश्चा भी व्यवद्र पंच आर ठ व स पाल मत का न छोड़ कर सथ मय जद में। की और न हूं तो या इनमें न्यू नता है : ७९ । ८०-याकाश और थिवी टल जायंगे परन्तु मेरी बात कभी न टंगी tt ३० म ० १० २४ । आ ० ३५ tt

। • समकक्ष -यद भ वात अfवे f Iर न्ता की भल अ। श जिस cर वहां जायगा जब आा का आयात सम न से मन द द । सन नइ। तt a f iदए 61 । सकता है ? "म र अपने मुख से अपनी बाई करना " रन्ट : दf 1 से ११ मई (५८ -1) ८१-त व वx उसे ज ने1३ अप्र ६३, ६ तi सेन कम' और ५'-५ से ८ ।