पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५३२

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7 न्या : क ी 5 से -- का संचार थे। ५३० चयार्थीलिया! अनन्त आग में जा जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार कीगई है 1 ६० म ० प० २५ । आ० ४ १ ॥ समीक्षक-भला यह कितनी बड़ी पक्षपात की बात है जो अपने शिष्य हैं उनको स्वर्ग और जो दूसरे हैं उनको अनन्त आग में गिराना परन्तु जब आका ही न रहेगा। तो अनन्त आग नरक बहिश्त कह रहे है जो शैतान और उसके दूतों को ईश्वर न बनाता तो इतनी नरक की तैयारी क्यों करनी पड़ती है और एक इंसान ही ईश्वर के भय से न डरा तो वह ईश्वर ही क्या है क्योंकि उसी का दूत होकर बागी हगया और ईश्वर उसको प्रथम ही पड़कर बन्दीगृह में न डाल सका न मार सका पुनः उसकी ईश्वरवा क्या जिसने ईसा को भी चालीस दिन दु:ख दिया ईसा भी उका कुछ न करसका तो ईश्वर का बेटा होना व्यर्थ हुआ इसलिये ईसा ईश्वर का न वेटा और न वाइवल का इरइंवर हापकता है , १ । ८२तत्र बारह शिष्यों में से एक यहूदाह इसकरियोती नाम एक शिष्य प्रधान याजकों के पास गया और कहा जो मैं यीशु को आप लोगों के हाथ पकड़वा तो आप लोग मुझे क्या देंगे उन्होंने उसे तीख रुपये देने को ठहराया ॥ ई० स९ प० २६ । आ० १४ । १५ ॥ समीक्षक-अब देखिये !ईसा की सब करामात और ईश्वरता यह खुलगई क्योंकि जi उसका वान शिष्य था वह भी उसके साक्षात् संग से पवित्रात्मा न हुआ ता औरों को बइ मरे पीछे पवित्रात्मा क्या कर सकेगा ? और उसके विश्वासी लोग उसके भरोसे में कितने ठगाये जाते हैं क्योंकि जिसने साक्षात् सम्बन्ध में शिष्य का कुछ कल्याण न किया वश मेरे पीछे किसी का कल्याण कर सकेगा 1 या ८२ 11 ८३-जब वे खाते थे तब यीशु ने रोटी लेके धन्यवाद किया और उसे तोड़ से शिष्यों को दियऔर कह ले ओो स्वाओ यह मेरा देह है और उसने कटोरा धन्यबाद माना और उनको देके कहा तुम सब इससे पियो क्योंकि यह मेरे अर्थात् नये नियम का है ॥ ई० म० प० २६ । आ० २६ 1 २७ । २८ ॥ मनुष्य समीक्षक-भला यह ऐसी बात कोई भी सभ्यकरेग विना अविद्वान् जंगला के, शिों न खाने की चीज को अपने मांस और पीने की चीजों को लोटू न Gकता और इसी बात को आजकल के ईखई लोग प्रभोजन कहते हैं अथनदी ा कद