पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५३४

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५३ २ स्पॉंत्रताछः 11 हैं - , | ठा। डेवढी में गया तो दूसरी दास ने उसे देख के जो लोग वहां थे उनसे कहा यह भी यीशु नासरी स्वंग । के फिर को के थाउसने किया या सुना कि मैं उस । तनय नहीं जानता हूं तब वह धिक्कर देने और क्रिया खाने लगा कि मैं उस समृश्य को नहीं जानता हूं है। ई० म० प० २६ 1 अ० ४७ t ४८ ॥ ४ 1 ५० t ६। १२ । ६३ । ६४ ६५। ६६ 1 ६७ । ६८। ६६ । ७० से ७१ 1 ७२1 ७४ सीक्ष-आज देख लीजिये के जिला इतना भी समर्च व प्रताप नहीं था कि अपने चेल को ढ़ विश्वास कर के और वे चेले चाहे प्रण भी क्यों न जत तो भी अपने गुरु को लोभ से न पकडतेन करते, न मिथ्याभाषण करतेत क्रिया खते और भी कुछ करमाती नहीं था, जैसा तोरेत में लि खा है कि लूत के घर पर पाहुनों को बहुत से मारने को चढ आये थे वह ईश्वर के दो दूत थे उन्होंने उन्हीं को अन्वा कर दिय यद्यपि यहू भी बहुत असम्भव है तथापि ईसा में तो इतना भी सार्य न था और आजकल कितना भड़वा उसके नाम पर ईसाइयों ने बढा रक्खा है. भला ऐसी दुर्दशा से मरने से आप स्वयं जू वा समाधि चढ़ा अथवा किसी प्रकार प्राण छोडता तो अच्छा था परन्तु इ बुद्धि विना विद्या के क i से उपस्थित हो वह ई व यद भी कहता है कि 1 ८५ ॥ ८६-मैं अभी अपने पिता से विनत नहीं करता है और वह मेरे पास स्व दूर की बारह सेनाओं से अधिक पहूं या न देगा 11 ई० म ० प० २६। श्रा० ५३ ॥ सभf कमाता भी जाता अपनी और अपने पिता की है।’ भी करता जा पर कुछ भी नहीं कर सकता हूं जो आश्चर्य ने बात जब सइ 1ज ने पूछा थE शक लए त बिन्दु तtiई त इ इस 5f उत्तर दे त। ६३ रहने कद भी ईवा के 9 ! न य नई वह अवश्य अप द िक ो च ा , देता तो भी छf होता ऐसी बहतf मन धमg, f rतें डित न t दिने : झठ द:प लगने रन था । द i K पर र म1 उन् व भt 31 चत न f It . या फर्क इस प्रकार का प!ध नहीं । " मई ३ कपड़े पर से कम में दि परन् वे भी तो इसी ने व न्याय की चपेट में १ दि न के ड रद r दा न उतरी कोर के ठ मई । 31 K।६ में दे ।t 1ों • 1tत में हैं न 5 द्थि ईस एम 44 त्रिशा ‘* 3 १६ ) मेंIf ‘द्र f द t हैं ? ) 1। प, सनी धर्ग । 6 17 ८ जाता। । ड t ८ 3 - 1. में 14 व 11 में १६ । ६4 xर न ०६ में 5 व युवा मां ८४. 2. TV it i, द 3 से f t t: आर. * 18 f 1 ा है।' कई 1 ा य, ई ई वर्ष के शुरू दिन में हार क।