पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५४०

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५३८ प्रत्याश1 ईश्वर भी दीपक के समान आग्नि है और सोनेका मुकुटादि आभूषण धारण करना और आगे पीछे नेत्रों का होना असम्भावित है इन बातों को कौन मान सकता है ? और वहां सिंहादि चार पशु लिखे हैं ॥ ९७ ९८-और मैंने सिंहासन पर बैठनेारे के दहिने हाथ में एक पुरतक देखा जो भीतर और पीठ पर लिखा हुआ था और सात छापों से उस पर छाप दी हुई थी। यह पुस्तक खोलने और उसकी छायें तोड़ने के योग्य कौन है और न स्वर्ग में ' न पथिवी पर न पृथिवी के नीचे कोई वह पुस्तक खोलने अथवा उसे देखने सकता था । और मैं बहुत रोने लगा इसलिये कि पस्तक खोलने और पढ़ने अथवा इस , देखने के योग्य कोई नहीं मिला ॥ यो० प० पर्ष ५ । आ० १ व २ । ३ से ४ ॥ समीक्षक-अब देखिये ईसाइयों के स्वर्ग में सिंहासनों और मनुष्यों का ठाठ और पुस्तक कई छापों से बंध किया हुआ जिसको खोलने आदि कर्म करनेवाला । स्वर्ग और थिवी पर कोई नहीं मिलायोन का रोना और पश्वात् एक प्राचीन ने कहा कि बही ईखा खोलनेवाला है, प्रयोजन यह कि जिसका विवाह उसका संत देखो ! ईसा ही के ऊपर सब माहात्म्य झुकाये जाते हैं परन्तु ये बातें केवल कथनमत्र ई Il ९८ ! > १९-—और मैंने दृष्टि की और देखो सिंहासन के और चारों प्राणिों के बीच में और प्राची के बीच में एक मेम्ता जे : वध किया हा खडा है? जि के सात । सींग और सात नेत्र हैं जो सारी पृथिवी में भेजे हुए ईश्वर के सातों अटमा हैं । य ० म० से ७ ५ 1 अ० ६ ! समीक्षक-अब देखिये ! इस योहन के स्वप्न का मनोव्यापार उस संवर्ग के ग्रा च प्र में सत्र ईसाई और चार पशु तथा ईसा भी है मैर कोई नहीं यह बड़ी अद्भुत गात धुई कि या तो ईसा के दो नेत्र थे और सींग का नाम भी न था और स्वर्ग में जाक 9 सात लiग चौर सात नेत्रवाल हुआ और वे सावों ईश्वर के आत्मा सा के संरा थर नेत्र बन गये थे ! ६य !ऐसी व। को ईसाइयों ने क्यों मान लिया भला १ कुटुछ di (लात में ९९ !

१० थे -और जब उसने पुस्तक लिया तब चारों प्री चबीत है

के आगे गिर प और इरए के पास बीण यी और धूप से भरे हुए सोने के सियाल और प्राचीन ने है पर द tr I श्रथनय से 11 मा२ १० से २ ५ t f० ८ t।