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चीनभारत ०. श्रेयांढखशुला: । ५४५

किरण-

राणना क्योंकर की १ एक छात्र चवाजी सदन ही स्वर्ग के वाली हुए शेष करोड़ों ईसाइयों के शिर पर न मोहर लगी ? क्या ये सब नरक में गये १ ईसाइयों को चाहिये कि सियोन पर्वत पर जाक देखें कि इसा का बाप और उनकी सेना वहां है । वा नहीं १ जो हो तो यह बेख ठीक है नहीं तो मिथ्याण, यदि कहीं से वहां आया तो कहां से आया १ जो कहो स्वर्ग से तो क्या वे पक्षी हैं कि इतनी बड़ी सेना और आप ऊपर नीचे उड़कर लाया जाया करें? यदि वह आया जाया करता है तो एक जिले के न्यायाधीश के समान हुआ और वह एक द दो वा तीन हो तो नहीं बन सकेगा किन्तु न्यून से न्यून एक २ भूगोल में एक २ ईश्वर चाहिये क्योंकि एक दो तीन अनेक ब्रह्माण्डों का न्याय करने और सर्वत्र युगपत् घूमने में समर्थ भी नहीं हो सकते ॥ ११८ है॥ ११६आत्मा कठता है हां कि वे अपने परिश्रम से विश्राम करेंगे परन्तु उन के कार्य उनके संग हो लेते हैं ॥ यो० प्रण ५० १४ । आ० १३ ॥ समीक्षदलिये ईसाइयों का ईश्वर तो कहता है उनके कर्म उनके संग रहेंगे अथात् कमालुखार से धक्का देय जाग यार यह जाग कहते कि इस पाप का लेलेगा और क्षमा भी किये जायेंगे यहां बुद्धिमान् वि चारें कि ईश्वर का वचन सा व ईसाइयों का एक बात में दोनों तो बच्चे हो ही नहीं सकते इनमें से एक झूठा अवश्य होगा इसको क्या, चाहें ईस।इयों का इंश्वर झूठा हो वा ईसाई लोग ॥ ११६ ॥ १२०और उसे ईश्वर के कोप के बड़े रव के कुण्ड में डाला । और रस के | कुण्ड का रौन्दम नगर के बाहर किया गया और रस कुण्डमें से घोड़ोंकी लगाम ! तक लोटू एकसौ कोश तक बह निकला ॥ यो० प० १० १४। आ० १९, २० ॥ समीक्षक-अब देखिये इनके गपोडे पुरों से भी बढ़कर हैं वा नहीं ईयों । क ईश्वर कार्य करते समय बद्त दुःखत जाता ांगा : जरी उखड कॉप के कुण्ड भरे हैं क्या उसका कोष जत्ठ है ? वा अन्य द्रवित पदार्थ है कि जिसके कुण्ड भरे हैं ? और सो कोश तक रुधिर का वह ना असंभव है क्योंकि बधिर वायु लगने से मट ज 'म जाता है पुन: क्योंकर बढ सकता है ? इसलिये ऐसी बातें मिध्या होती हैं ॥ १२० ॥ - ।