पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५०

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५४ e स्थाष्ट्र: !! ' की ओर से १२६ -—उनमें से एक मेरे पास आया और मेरे संग वाला कि आ अा में दुल- हिन को अर्थात् मेम्ले की बी को तुझे दिखाऊंगा ॥ यो० न• प० २१1 आ० & ॥ समीक्ष-भला ईथा ने स्वर्ग में दुइिन अत् नी अच्छी पाई मौज करवा होगा, जो २ ईसाई वहां जाते होंगे उनको भी त्रियां मिलती होंगी और लडके वाले होते होंगे और बहुत भीड़ के हो जाने से रोगtत्पत्रि होकर मरते भी होंगे । ए स्वर्ग t दूर से हाथ में लाडन अच्छा है !I १२६ Al १२७और उसने उस नख से नगर को नापा कि साढ़े सात सौ करोश का है उसकी लम्बाई और चौडाई और ऊंचाई एक समान है । और डने उस भीत को मनुष्य के अर्थात् दूत के नाम से नापा कि एक चावाली झाथ 60 और उसकी भीत की डाई सूर्यकान्त की थी और नगर निकेल iने का निर्मल ब्रांच के समान था और नगर के भtत की नेवे हर एक बहुमूल्य पत्थर धुंवारी हुईं थीं पहिली ने सूकन्त की थी दूसरी नीलमणि की, लालू की, चौथी मरकती, पांचवीं गोमेद की, छठ मणिक्य की, सात [ीं पीतमणि कI) आठवीं पेरोज । की, न पुखराज जी, दश तहसनिये की, एग्यारह f वूम्रकान्त का , बारह मय की और वrर इ 5;ट वरई सोती थे एक २ मोती से एक २ फाटक बना था और नगर की सड स्वच्छ कtव ऐड निर्मल सोने की थी !! या० ’ प० २१ 5 मा० १६ 1 १७ व १८ । १९ २० : २ १ ! समीक्ष-सुनो ईसाइयों के स्वर्ग वन ! यदि ईखाई मरले जाते और का जन्मझे जाते हैं तो इतने बड़े शहर में केले दम बढ़ेंगे ? क्योंकि इसमें संतुष्यों का आगम होता है और उससे निकलते नहीं और जो चय बहुमूल्य रत्तू की बनी हुई नगरी मानी है और सर्व सोने की है इत्यादि ने केवल भोले स८ को कर मुंचाने की लीला है । भला लंबाई चौडाई वो इस नगर की लिखी तो हो सका परन्तु ऊंचाई साढ़े सात सौ ोश क्योंकर हो सस की है ? यह सर्व मिया कपेल पना की बात है और इतने बड़े सोती कहां से आये होंगे १ इस क्षेत्र के लिए नेगरा के घर के घड़े में , यह गोह पुराण का भी बाप है ॥ १२७ ॥