पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५३

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कि परीके से यह के का नुभूामिका ॥ ( ४ ) 6 . जो यह १४ चौदहवां समुला मुसलमानों के मतविषय में लिखा है तो केवल कुरान के अभिप्राय से, अन्य प्रन्थ के मत से नहीं क्योंकि मुसलमान कुरान पर ही पूरा २ विश्वास रखते हैं, यद्यपि फ़िरके होने के कारण किसी शब्दू अर्थ आदि विषय में विरुद्ध बात स्पष एकमत्य है तथापि कुरान पर हैं। जो कुरान आर्की भाषा में है उस पर मौल वियों ने उर्दू में अर्थ लिखा है उस अर्थ का देवनागरी अक्षर और आ।भाषान्वर कराके पश्चात् के बड़े २ विद्वानों से शुद्ध गया है यदि कोई कहे अबों करवाIलखा कि यह अर्थ ठीक नहीं है तो उसको उचित है कि सौवीं साहबों के तजुर्गों का पहिले करे पश्वात् इस पर लिखे यह लेख केवल मनुष्यों की खण्डन विषय क्योंकि उन्नति और सयालय के निर्णय के लिये सब मतों के विषयों का थोड़ा २ ज्ञान होवे इससे मनुष्यों को परस्पर विचार करने का समय मिले और एक दूसरे के दोषों का खण्डन कर गुणा का प्रहण करें म किसी अन्य मत पर न इस मत पर उठ मठ बुराई वा भताई लगाने का प्रयोजन है किन्तु जो २ भलाई है वही भलाई और जो बुराई है वही बुराई सब को विदित होवे न कोई किसी पर झूठ चला सके और न सत्य को रोक सके और सत्यव्स्य विषय प्रकाशित किये पर भी जिमकी इच्छा हो वहू न माने वा सात किसी पर बलात्कार नहीं किया जाता और यही सज्जनों की रीति है। कि अपने वा पर ये दोों को दोष और गुणों को गुण जानकर गुर्गों का प्रण और करं दोषों का त्याग करें और हठिों का ठ दुराइ न्यू न करखें क्योंकि पक्षIव से | जगत् में न हुए और न होते हैं। तो यह है कि इस अनिश्चित क्या २ अनय सच