पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५५

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थ चतुसमुल्ल सारः ॥ अथ यवनमतविषय समीक्षिष्यामहे ॥ इसके आगे मुसलमानों के मतविषय में लिखेंगे । १-आरंभ साथ नाम अल्लाह के क्षमा करनेवाला दयालु ॥ मंजिल १ । सिपारा १। सूरत १ ॥ समक्ष-मुसलमान लोग ऐसा कहत के य8 रन झा का का ६ प रन्तु इस वचन iदित ता सन ब नान वाला कोई दूसरा है या जो परमेश्वर का बताया होता तो ‘‘भारंभ साथ नाम अलइ के ’’ ऐसा न कहता किन्तु ‘‘आरंभ बारते उपदेश सहुड़यों के" ऐसा कहता ! यदि मनुष्य को शिक्षा करता हूं कि तुम एल का ता भी ठीक नहीं, क्या खख पाप का आरभ भ दा के नाम से होकर उसका नाम भी दूषित हजाया ज वह क्षमा आर दया करार दे तो उसे अपनी सृष्टि में मनुष्य के सुखाथ अन्य प्राणियों को मार, दारुण पीड़ा दिलाकर मेरवा के मांस खाने को आज्ञा क्यों दी १ क्या वे प्राणों, अनपराधी आर परमेश्वर के बनाये हुए नहीं हैं ? योर य३ भी कहना था कि ‘‘पर सेश्वर के नाम पर अच्छों बातों का आरंभ' बुरी बातों का नहीं इस कथन में गोल- माल है, क्या चोरीजारीमियाभाषणदि अधर्म का भी आरंभ परमेश्वर के नाम पर किया जाय । १ इसी से देख लो कसाई आदि मुसलमान, गाय आदि के गले काटने में भी ‘विमिखाइ’ इस वचन को पढ़ते हैं जो यही इसका पूक अर्थ है । तो बुराइयों का आरंभ भी परमेश्वर के नाम पर मुसलमान करते थे और मुसल माई का ‘खुदा' दयालु भी न रहेगा क्योंकि उसकी दया उन पशुओं पर न रही ! और जो मुसलमान लोग इसका अर्थ नहीं जानते तो इस वचन का प्रकट