पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५६

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न्यान्न-4 .4,21 ५५४ होना व्यर्थ है यदि मुखल मान लोग इसका अर्थ और करते हैं वो सूधा अर्थ क्या है ? इत्यादि ॥ १ ॥ २--बब स्तुति परमेश्वर के वास्ते हैं जो परवरदिगार अर्थात् करनेहारा पपालन है सब संसार का 1 क्षमा करने वाला दयालु है | में० १। खि० १। सूरतुराiता । आ० १ से २ ॥ समीक्षक-जो कुरान का खुदा संसार का पालन करनेहारा और होता सब पर क्षमा और दया करता होता तो अन्य मतवाले और पशु आदि को भी मुख मानों के हाथ से मरवाने का हुक्म न देता। जो क्षमा क रनेहारा है तो दया पापियों पर भी क्षमा करेगा १ ओर जो वैसा है तो आगे िज़ंग कि ‘‘काफ़िरों को कतल करो' आत् जा कुIन और पैगम्बर को न मानें वे काफिर हैं एसा क्यों कहता इसलिये कुरन इवत नई दीखता ॥ २ । ३-मालिक दिन न्याय का ॥ तुझ हीं को हम भक्कि करते हैं और चुके हैं। खे खाय चाहते हैं । दिखा हमको सीधा रास्ता ॥ में ० १। कि ० १ : सू’ १ ! आ० ३ से ४ 1 ५ I ! ख सख मीक्षक-क्या खुद नित्य न्याय नहीं करता ? किसी एक दिन है ? व तो विदित होतः है ! उपी की भक्ति और उसीखें न्याय करतई ई अवर चाइना तो ठीक परन्तु क्या बुरी बात का भी साय चना ? आर सूखा मारा ड करन ।य एक मुलमान झ का है या दूसरे का १ मार्ग को सुल मान क्र्यों भी मण करते ? क्या [की ओर का तो नहीं चाहते। सूचे न स ा रास्ता ई ? यदि भलाई सस फां ए 5 ई तो फिर मुठान ही में विशेष कुछ न रहा और जो दूसरा दे। मलाई नहंीं मानते तो पक्षपाती हैं ।॥ ३ । की और न ४उन लोगों का रास्ता कि जिनपर तू ने निचमत की ोर उनका मारा गत दिया कि जिनके ऊपर लू ने राव अथात् अत्यन्त क्रोध की दृष्टि गुरुद्दों का मार्ग दम को दिखा ॥ में ० ११ खि० १ । सू० १ । आ० ६ 1 ७ !" सीव 5-य से तमाम लोग पूर्वजन्म और कृत पाप पुण्य नहीं मानते ता ( )ि पर नि ागत श्रन् या दया करने पर जहां पर न करन सड़ १ पाने हैंग , पi s विनय पt gय नुख । टु कर देना औयल अन्याय । Aj . 16-म 41 घ । ि५ ईयक हर हरकत पर सुष्टि करता भी १ स्वभाव से मf दे ५३t दहें ६र चंदा मार 46 ई ६ अ ा स झट समित पुण्य पाप ही ! ए की भत है ! 3