पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५६५

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चतुदश इस मुल्लाख: ॥ अखा ( दंड ) पत्थर पर मार उसमें से बारह चश्में बह निकले ॥ सं० १। सि० १ ! सू॰ २ : आ० ५६ । समीक्षक--अब देखिये इस अखंभव बातों के तुल्य दूसरा कोई कहेगा ? एक पत्थर की शिला में डंडा मारने से बारह झनों का निकलना सर्वथा असंभव है, उस पथर की अंतर से पहला कर उसमें पानी भर बाघx iछ लू करने से सम्भव है अन्यथा नहीं ॥ २३ ॥ २४—और अलाइ खाख करता है जिसको चाहता है साथ दया आपनी के ॥ में ० १। सेि ० १ । सू० २ । आ० १७ ॥ समीक्षक-क्या जो मुख्य आर दया करने के योग्य न हो उसको भी प्रधान बनाता और उस पर दया करता है ? जो ऐसा है तो खुदा बडा गडबड़िया है क्योंकि ! फिर अच्छा काम कौन करग ? और बुरे कर्म कौन छोड़ेगा ? क्योंकि खुदा की प्रसन्नता पर निर्भर करते हैं कर्मफतल पर नहीं इससे सबको अनास्था होकर करें- छे हो २४ 1 २५-ऐसा न हो कि काफिर छोग ईष्य करके तुमको ईमान से फेर देखें क्योंकि उनमें से ईमानवालों के बहुतबे दोस्त हैं ।॥ में ० १ सि ० १ स०२ अ० १०१ | समीक्षकअब देखिये खुदा हीं ' उनको चिताता है कि तुम्हारे ईमाम को कtफिर छोग न डिगा देनें क्या वह सर्वज्ञ नहीं है १ ऐसी बातें खुदा की नहीं हो ३ सकती हैं . ॥ २५ ॥ २६सुम जिधर मुंह कर इधर ही मुंह अचाहू का है ॥ में ० १ 1 सि० १ ! : स ० २ । आ० १० ॥. समीक्षइ-जो यह बात सच्ची है तो मु खेल माल केमले की ओर मुंहू क्यों करते हैं?जो कहें कि इको किले की ओर मुंई करने का हुक्म है तो यह भी हुक्म है कि चाहे जिधर की ओर रुख करो, क्या एक बात सच्ची और दूसरी झूठी होगी ? और जो अता का सुख है तो वह सब ओर हो ही नहीं सकता क्योंकि एक मुख एक ओर रहेगा सब ओोर क्योंकर रह सकेगा ? इसलुिये यह गत नहीं : २६ ॥ २७-जो आख मान और भूमि का उत्पन्न करने वाला है अब वो कुछ करना , बाइता है यद्द नहीं कि उसको करना पड़ता है किन्तु उसे कहता है कि होजा वस्ख हजता है : मं० १। खि० १ । सू• २ । आ० १०९ 1 .