पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५६९

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चतुद्देश्टमुला: । ५६७ ने 2" विभिन्न । समीक्षक -यहां विचारना चाहिये कि मुद चहे आापसे आप मेरे वा किखी के मारने से दोनों बराबर हैं, हां इनमें कुछ भेद भी है तथापि मृतकपन में कुछ भेद नहीं और जब एक सूअर का निषेध किया तो क्या मनुष्य का मांस खाना उचित है? क्या यk बात अच्छी हो सकती है कि परमेश्वर के नाम पर शत्रु आदि क अत्यन्त दु:ख दे के प्राण हत्या करनी १ इससे ईश्वर का नाम कलंकित होजाता है, दो ईश्वर ने बिना पूर्वजन्म के अपराध के मुसलमानों के हाथ से दारुण दुःख क्यों दिलाया है क्या उन पर दयालु नहीं है१ उन लो पुत्रवत् नहीं मानता है जिस वस्तु से अधिक उपकार होने उन गाय आादि के मारने का निषेध न करना जान हत्या कराकर खुदा जगत का निकारक है हिंखारूप पाप से कलंकित भी हो जाता है ऐसी बातें खु और खुदा के पुस्तक की कभी नहीं हो सकतीं॥ ३३ ॥ 2 _है - ३४-रोज की बात तुम्हारे लिये हलाल कगिई कि मद नोमव करना अपनी बीवियों से वे तुम्हारे वास्ते पदों हैं और तुम उनके लिये प हो अदाह ने जाना कि तुम चोरी करते हो अर्थात् व्यभिचार बख फिर अल्लाह ने क्षमा किया तुम को बस उनसे मिलो और ढूंढो जो आल्ल'द ने तुम्हारे लिये लिख दिया है अर्थात् संखन खो पिो यहां कि प्रकट हो तुम्हारे लिये काले दागे ख सुपद तागा वा रIत वे जब दिन निकले ॥ से ० १ । सूि० २ सू० २ । आा ० १७२ ॥ समीक्षक-यहां यह निश्चित होता है कि जब मुसलमानों का मत चला व उप- के पहिले किसी न किसी पौराणिक को पूछा होगा कि बान्द्रायण त्रत जो एक महीने भर का होता है उसकी विधि क्या है वह शायविधि जो के याहू म चन्द्र की कला घटने बढने के अनुसार प्रख को घटाना बढ़ाना और मध्यान्हें दिन से खाना लिखा ६ उधक न जान कर कृ ा कि चन्द्रमा का दर्शन का खाना उसको इन मुसलमान लोगों ने इस प्रकार का कर लिया परन्तु व्रत में बीमागम का त्याग है। यद एक बात खुदा ने बढ़कर दी कि तु म ।नयों का भी समागम भले ही किया करते और रIत में चाहे अनेक बार खाओ, भला यह त्रत क्या हुआ १ दिन न का । खया रात को खाते रहे, यह सृष्क्रिम व विपरीत है कि दिन में न ख‘ता रत में खाना में ३४ । A ३५. --छअलाद के मार्ग म ल उन व ज में 4 लड़त मार डाों म उनको जहां पओ है। कृतल से ' बुरा है tt iात उन से लड़ो कि डुमत न