पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५७

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४४ सत्यप्रका.’ I) हैं और राज्य का पालन करते हुए पढ़ते पढ़ाते जायें ( प्रज न ० ) वीर्य की रक्षा और वृद्धि करते हुए पढ़ते पढाते जाये (प्रजाति,० ) अपने सन्तान और शिष्य का पालन करते हुए पढत पदात जाय । यमान् लेवेत सतत न नियमन् केवला बुधः । - यमन्पतत्यकुबोण नियमान् केवला भजन् ॥ सतु० अ० ४ । २०४ । यम पाच प्रकार के होत हैं | ताहिंससयास्तेयत्रह्मचपरिग्रह यमः ? योग० साधनपाढ़े सूत्र ३७ ! अर्थात् ( आहिंसा ) चैरत्याग ( सस्य ) सत्य साननासत्य बोलना और सत्य ; ही करना ( अस्तेय ) अर्थात् सन वचन कर्म से चोरी का त्याग ( ब्रह्मचर्य ) अर्थान ! उपस्थेन्द्रिय का संयम ( अपरिग्रह ) अत्यन्त लापता छोड स्वस्वाभिमानरहित होना T इन पांच यमो का सेवन सदा करें, केवल नियों का सेवन अत-- शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः ॥ यांग० साधनषाद सू° ३ ॥ ( औौच ) अर्थात् स्नानादि से पवित्रता ( सन्तोष ) सम्यक् प्रसन्न होकर निरु . चम रहना सन्तोष नहीं किन्तु पुरुषार्थ जितना हो सके उतना करना हानि लाभ में हर्ष बा शोक म करना ( तप ) अर्थात् कसेवन से भी घरोंयुक्त कम का t ष्ठान ( स्वाध्याय ) पढ़ना पढ़ना ( ईश्वरप्ररेणुवान ) ईश्वर की भक्तिविशेप से { आत्मा को अर्पित रखना ये पाच नियम कहते हैं। यमों के बिना केवल इन निर्य का सेवन न करे किन्तु इस दोनों का सेवन किया करे जो यों का सेवन छोई के केवल नियमों का सेवन करता है वह उन्नति को नहीं प्राप्त होता किन्तु अधोगति अथत ससार में गिरा रहता है कामाक्षमता न प्रशस्ता न हारत्यकामता । । काम्यो हि वेदाधिगम कर्मयोगश्व वैदेिक’ । मनु० अ० २ 1 २८ ॥