पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५७६

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नष्ट क्यों होते हैं ? और खुद भी मुसलमानों के साथ मोइ चे या छुआ दीख पड़ता है। ज का पक्षपात खुदा तो धामा पुरुष का उपाय नीय कभी २, २ सकता !!१२ ५३र अल्लाह तुमको परोक्षज्ञ नहीं करता परन्तु अपने पैगम्बरों से जिसको चझे पसन्द करे व अल्लाहू और उसके रसूल के साथ हेंमन लाओों ॥ में ० १ 7 चि ० ४ । सु० ३ 1 आ० १५६ ॥ समीक्षक-जब मुसलमान लोग विवाय खुदा के किसी के साथ इमाम । लाखे और न किसी को खुद का खाक्षी मानते हैं तो पैग़म्बर साहेब को क्यों ईमान ! में खुद के साथ शरीक किया १ अल्लाहू ने पैगम्बर के साथ ईमान लाना लिखा इसी खें पैगम्बर भी शरीक होगया पुनः शरीक कहना ठीक न हुआा यदि इसका अर यह समझा जाय कि मुहम्मद हेव के पैगम्र होने पर विश्वास लाना चाहिये दो यक्ष प्रश्न होता है कि मुद्र साव के होने की क्या आवश्यता है ? यदि खुद्दा उनको पैगम्बर किये बिना अपना अभीष्ट कार्य नहीं कर सकता तो अवश्य अस- मधे हुआ। t ५३ ॥ ५४ -ऐ ईमानघछो! संतोष करो परस्पर थामे रक्खो और लड़ाई में लगे रहो अल्लाह से डरो कि तुम छुटकारा पा ॥ में ० १ 1 खि० ४ सु० ३ 1 आ० १७८। समीक्षक—यह कुरान का खुदा और पैगम्बर दोनों लडाईवाज़ थे,जो लड़ाई की आज्ञा देता है, वह शtतिभंग करनेवाला होता है क्या नाममात्र खुदा से डरने खे छुटकारा पाया जाता है १ वा आयु लड़ई आदि डरते चे, जो प्रथम पक्ष ३ से डरना न डरना वरवर झौर को द्वितीय पक्ष है तो ठीक है ! ५४ । ५५ये आए। क्री हदें हैं जो अलएइ और उसके रसूल का कहा मानेगा वइ बहित में पहुंचेगा जिनमें लहरें चलती हैं और यही बड़ा प्रयोजन है ॥ जों अजमुई br रसूल की आज्ञा भंग करेगा छोर उख की ों से बाहर और उसके होजायगा वह सदैव रहनेवाली आग में जलाया जायगा और उसके लिये खराब करनेवा दुःख दे ॥ 1 सि० ४ में 8 १ । र४ ! आा० १३ । १४ ॥ iदक- ी ने मुहम्मद व पंसम्बर को अपना शरीक कर लिया -खुदा । है और खुदा कुरान ही में लिखा है और देखो सुदृ पैगम्वर के साथ साहेन सैंया है कि जिसमें वति में रसूल का सामना करदिया है । किसी एक बात त भी मु मानों का स्वतन्त्र नहीं वो लारीक कहना व्यर्थ है पंडा के ख हैं। दव पुत5 में न हो सकतीं हैं ५५ ॥