पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५७७

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चतुर्दाघमुला: । ७५ -- - - --- - ---


५६-और एक नसरे की बराबर भी अल्लाहू अन्याय नहीं करता और जो भलाई होवे उसका दुगुण करेगा उसको 1० १ 1 ०ि ५। सू॰ ४ आ० ३७ ॥ समीक्षक--जो एक त्ररेणु भी खुद अन्याय नहीं करता तो पुण्य को द्विगुण क्यों | देता है और मुसलमानों का पक्षपात क्यों करता है मैं वास्तव में द्विगुण बा न्यून | फल कम का देवे तो खुदा अन्याय होजावे ॥ ५६ ॥ ५७ जब तेरे पाच से बाहर निकलते हैं तो तेरे कहने के सिवाय (विपरीत ) सोचते हैं अल्लाहू उनकी सलाह को लिखता है ॥ अल्लाह ने उनकी कमाई वस्तु के कारण से उनको उलटा किया क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह के गुमराह किये हुए को मार्ग पर नावो बस जिसको आस्लाइ गुमराह करे उसको कदापि सार्ग न पावेगा ॥ सं० १। खि० ५ । यू० ४ । छा० ८० से ८७ ॥ समीक्षक-जो अल्तa बातों को लिख बही खाता बनाता जाता है तो सर्वे नहीं ! जो सर्वज्ञ है तो लिखने का क्या काम । है और जो मुसलमान कहते हैं कि शैतान ही सुष को बहकाने से छुट हुआ तो जज ब खुदा हूं। जावां का गुसरद्द करता हूं तो खुद और शैतान में क्या भेद रहा १ हां इतना भेद कढ़ सकते हैं कि खुदा बड़ा शैतान वह छोटा शैतान क्योंकि मुसलमानों की का कल है कि जो बहकाता है वही शै- तान है तो इस प्रतिज्ञा से खुद को भी शैतान बना दिया ॥ ५७ ॥ 3 - ५८र अपने हाथ में न रहें तो उनकी पकड़ ली और जहां पध मर डालो 11 मु खल मान को मुसलमान का मारना योग्य नहीं जो कोई अनजान से मार- डाले बस एक गन मुसलमान का छोड़ना है और खून ा उन लोगों की ओर से हुई जो उस कम चे होवे और तुम्हारे लिये जT दान कर देखें जो दुश्मन की कम ये हैं ! ! और जो कोई मुसलमान को जानकर मार डाले वह खदैव काल दोजख में रहेगा उस पर आलइ का क्रोध और लानत है ।॥ मं० १ 1 से ४1 सू० ४ 'आा० ९० । ११ 1 ६२ ॥ समीक्ष-अब देखिये महापक्षपात की बात है कि जो मुसलमान न हो उसको जा पाम सारडालो और मुसलमानों की न मारना भूल से सुखमानों मारने में प्रायश्चित और अन्य को मारने से बहिश्त मिलेगा एवं उपदेश को धूप में डालना चाहिये ऐसे २ पुरवल ऐसे २ पैगम्भर ऐसे २ खुद,र ऐसे २ मत से विश्वाय हानि के लाभ कुछ भी नहीं ऐसों का न होना अच्छा और ऐसे प्रामादिक मतों से बुद्धिमान को अलर्ण कर वेदोक सब बातों को मानना चाहिये क्योंकि उसमें प्रदत्य सिंधि- - -