)ि की रयान'I: 5 समीक्षक-भता जो बहिश्खवालों के समीप अल्लाह रहता है तो सर्वव्यापक क्यों कर हो सकता है ? जो सर्वव्यापक नहीं तो स्ष्टिकत और न्यायाधीश नहीं हो सक- | ता1 और अपने मा, बापभाई और मित्र का छुडवाना केवल अन्याय की बात है, ा जा व बुरा उपदेश कर, न मानना परन्तु की सेवा अदा करनी चfiय I जा पहिले खुदा मुसलमानों पर सन्तोषी था और उनके चाय के लिये लश्कर उतारता था सच होता तो अब ऐसा क्यों नहीं कर ता है और जो प्रथम काफ़िरों को दण्ड देता और पुन: उसके ऊपर आता था तो अब कहां गया ? क्या विना कड़ाई के इमाम खुद नहीं बना सकता है ऐसे खुदा को हमारी ओर से सदा तिलांजलि है, खुद्दा क्ष्य है एक खिलाड़ी है ? ॥ ८२ ॥ ८३-ौर हम बाट देखनेवाले हैं वास्ते तुम्हारे यह कि पहुंचावे तुम को अल्लाई अज़ाब अपने पास व हमारे हाथों से ॥ में ० २ । खि ० १०। सू० ९ । अp ५' ख समीक्षक-क्या मुसलमान ही ईश्वर की पुलिस बन गये हैं कि अपने ाथ बा मुसलमानों के हाथ से अन्य किसी सम तवाों को पकड़ा देता है ? क्या दूर क्रा मनुष्य ईश्वर की अप्रिय हैं १ मुलमानों में पापी भी प्रिय हैं ? यदि ऐसा है तो अन्धेर नगरी गवरगण्ड राजा को सी व्यवस्था दीखत है आश्चर्य है कि जो उद्ध स। मुसलमान हैं वे मी देख निर्मल अयुक मत को मानते हैं ॥ ८३ ! ६४प्रतिज्ञा की है अल्लाद ने ईमान वालों से और ईनवाठियों से महैि । तें चलती हैं नीचे उन से नहरें सदैव रहनेवाली बीच उसके और घर पवित्र बंच । } बहिश्त अदन के और प्रसन्नता अल्ला की ओर वह है और यह कि इ है र पाना बढ़ ॥ यव ठट्ठा करते हैं उन क्षे ा किया अल्लाह ने उनस ॥ सं० २ । डि० १० । स • ९ , 1 आ ० ७९ : ८० ॥ सीत5-६ खुदा के नाम से भी पुर्गों को अपने मतलब के लिये जोभ देना है यit कि के जो ५पर जलभ न वे ते तझे कोई मुहम्मद खदेव के तल में न । 4.kar k a t अब तवा से भी किया करते हैं । मनु -य लोग तो अपस में टैटू ४ि५t ६ परन्तु सेठ को sि से छा करना उचित नहंीं हैं य? a KA में 45 ६ MAt ई कt ८८ 10 '५- 5५६ भोर 1 ग f 1थ उसे ईन थे जिक६५ ? ( . ।