पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६०५

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कि । ६४ ९ चतुर्दशसमुला: । निश्चय जो लोग कि दुःख देते हैं अराई को और रसूल पूके को लानत की है उन कf अIद ने t ॥ और वे लोग iके दुःख देते हैं मुख gज मानव को और मुसलमान औरतों t को t बिना इसके बुरा किया है उन्ने बढ़ निश्चय उठ।या उन्होंने इत।म अर्थात् झूठ और प्रत्यक्ष पाप है॥ लानत मर जहां पाये जावें पकड़े जावें कतल किये जवें ख व मारा जाना ॥ ऐ रब हमारे दे उनको द्विगुणा अब से और तानत से बड़ी ल।नत कर॥ ५० ५ । सेि ० २२ । सु० ३३। आ० ५० । ५४ से ५५ : ५८। ६५ ॥ ' समीक्षक-वाइ क्या खुदा अपत्ती खुदाईं को धर के साथ दिखला रहा है ? जैसे रसूल को दुःख देने का निषेध करना तो ठीक है परन्तु दूसरे को दुःख देने में रसूल को भी रोकना योग्य था सो क्h न रोका ? क्या किसी के दुःख देने से अलह भी दुःखी हो जाता है यदि ऐसा है तो वह ईश्वर ही नहीं हो सकता । क्या अल्लाte और । रसूल को दुःख देने का निषेध करने से यहूं नहीं सिद्ध होता कि अल्लाह और रसूल जिसको चाहें दुःख देवें १ अन्य सबको दुःत्र देना चाहिये ? जैसा मुच लमानों और सुख सलमानों की नियों को दु:ख देना बुरा है तो इनके अन्य मनुष्यों को दु:ख देना । भी अवश्य बुरा है ॥ जो ऐसा न मान तो उसकी यi बात भी पक्षपात की है, बाइ गद्दर मचानेवाले खुड्डा और नबी जैझे ये निर्दयी संसार में हैं वैसे और बहुत थोड़े हों जैसा य कि अन्य लोग जहां पाये जाव मारे जावें पकड़े जावें लिखा ६ वैसी ही मुख - लमानों पर कोई आज्ञा देखे तो मुसलमानों को यa बात बुरी लगेगी या नहीं १ । ' क्या हिंसक पैगम्बर आदि हैं कि जो परमेश्वर से प्रार्थना करके अपने से । दूसरों को दुगुण दुःख देने के लिये प्रार्थीना करना लिखा है यह भी पक्षपात मततबन्धुिन और महा अधर्म की बात है इसे अबतक भी मुवल मान लोगों में से बहुत से शठ लोग ऐसा ही कर्म करने में नहीं डरते यह ठीक है कि शिक्षा के विमा मनुष्य पशु के अमान रहता है A १२८ । । १२९-और अल्लाह व पुरुष है कि मेजता है दवाआर्य को बख उठाती ६ याद लों को बस क लेते हैं तर्फ शहर मुर्दे की बख जीवित किया इसने साथ उ पृथिवी को पीछे सत्यु उसकी के इसी प्रकार कृत्रों में से निकलना है ॥ जिसमे उतारा गीष पर अदा रहने के दया अपनी से नहीं लगती हूम को भी प ा के मदन.5 पर नहीं लगवी बीच उनके मांगी स० ५ 1 खि० २२ । सू॰ ३५ ' अा : ९ से १५ ॥


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