पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६१

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दिन छह से सात की कामना साथ न्यायालय का कामकाज ४८ सत्यार्थ प्रकाश: 1 के हैं - - -- जो वेद को न पढ के अन्यत्र श्रम किया करता है वह अपने पुत्र पौत्र सहित

शूभाव को शीघ्र ही प्राप्त होजाता हैं ।

वर्जयेन्सधु मसञ्च गन्धे सायं रसान् निय’। शुक्तानि यानि सवणि प्राणिन व हिंसनम ॥ १ ॥ | - अभ्यढमजन चावणरुपानच्छत्रधारणम् । काम क्रोध च लाने व नर्सन गोतवादनस ॥ २ ॥ ति व जनजाद च पांरवाद तथान्तृतम् । स्वीण व ऐक्षणrलस्तेमुपात परस्य च : ३ ॥ एकः शीत सत्र न रेतः स्कन्दर्यत्वांचेद। कामाद्धि स्कन्दयोतो हिनस्ति ऋतमामनः ॥ ४ ॥ म॰ २ से १७७-१८० । प्तचारी ोर ब्रह्मचारिणी सघगासगन्ध, साला, रस, त्री और पुरुष का स, म् य खटाई, प्राणियों की हिंसा ॥ १ ११ अर्से का सदैन, विना निमित्त उप- स्थेन्द्रिय का स्पर्श, लाखो मे अजनजूते और छत्र का धारण, काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, इंयों, जंप, नाचगाम और बाजा बजाना ॥ २ 11 जूत, जिस किसी की कथा, निन्दा, मियाभपणनियो का दर्शन, आाशयदूसरे की हानि आदि कुकर्षों को सदा छोड देवें (1 ३ : सर्वत्र एकाकी सोबे वीर्यस्खलित कभी

न करें, जो कामना से वीर्यचलित करदे तो जानो कि अपने ब्रह्मचर्यचत क।

नाम कर दिया : ४ 15 वेदमनूच्याचाsन्तेवासिनमनुशस्ति 1 सयं बद । ' धमें चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचाच्यय प्रियं धन माहृत्य प्रजातन्दु मा व्यवच्छती। सत्यान्न प्रमदिन- व्म् । धन्न प्रमदितव्य : कुशलान्न प्रसदितव्य। भ4 न प्रमादितब्बसु । स्वाध्यायग्रवचनाभ्यां न प्रमदित च्य अवधि कार्याभ्यां न प्रमदितब्यम् । मातृदेवो भव । |