पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६२२

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साथप्रकाश: 15 A -AAन और पक्षपातरहित विद्वानों और बुद्धिमानों को प्राप्य है इम्र विना जो कुछ में है बइ सब अविद्या भ्रमजाल और मनुष्य के भार को पशुव बनाकर श।न्ति भग के उपद्रव मचा मनुष्यों में विद्रोइ केता परस्पर दु:खनति करनेवाला विषय है। और पुनरुक दोष का तो कुरान जानो भण्डार ही है, परमात्मा तब मनुष्यों पर कृपा करे कि जब वे सब प्रीति, परस्पर मेल और एक दूसरे के मु य की उन्नति करने में प्रवृत्त हों। जैसे मैं अपना वा दूसरे मतभतन्त का दोप पक्ष Iतरहित होकर प्रकाशित , करता हूं इसी प्रकार यदि वध विद्वान लोग करें तो क्या कठिनता है कि परस्पर का विरोध छूट मेल होकर आनन्द से ए क मत होके तय ी प्राप्ति सिद्ध हो । यहू थोड़ा कुरान के विषय में लिखा, इसको बुद्धिमान धार्मिक लोग प्रन्थकार के अभिप्राय को ! सस लाभ लेवें। यदि कहीं भ्रमखे अन्यथा लिखा गया हो तो उसको शुद्ध कर व ॥ A e . अब एक बात यह शेष है कि बहुतबे मुसलमान ऐसा कई करते और लिखा था। छपवाया करते हैं कि हमारे मज़हब की बात अथर्ववेद में लिखी है इसका यह उत्तर { है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है (प्रश्न ) क्या तुमने संग अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो घछोपनिषद् देखोयह साक्षात् उसमें लिखी है, फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है । श्रथा लोपनिषदें व्याख्यास्यामः है। अस्माल लां इले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते ॥ इल ब्लेवरुणो राजा पुनईदुः ॥ हया भित्रो इलां , इल्ल इल्लां वरुझे मित्रस्तेजस्कामः ॥ १ ॥ होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः ॥ अल।ज्येष्ठ श्रेष्ठं परम पूर्ण ब्रह्माण मल्लास ॥ २ ॥ अल्लोरसूलमहमदरकबरस्य अल्लो अल्लास ॥ ३ ॥ अंदल्लाबूकमेककर्मा ॥ अ लाचूक निखातक ॥ ४ ॥ अल्लो यज्ञन हुतहु ॥ अल्लाप चन्द्र सर्वे नक्षत्रः ॥ ५ ॥ अदा