पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६२४

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चत्याचैनलS: !

न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है, जिस प्रकार से मैंने इसको अयुवक ठड़ाई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्ववेद गोपय वा इसकी शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसा का तैसा लेख दिखता और अर्थसंगति से भी शुरू करो । तब वो सश्रमाण हो सकती है ।(श् ) देखो हमारा मत के अच्छा है कि जिन में सन प्रकार का सुख और अन्त में मुक्ति होती है ( उतर ) ऐसे ही अपने २ मद । वाले तब कहते हैं कि हमारा ही मत अच्छा है बाकी सब बुरे विमा इमारे सत के दूसरे मद में मुक्ति नहीं हो सकती । अब हम तुम्हारी बात को सच मानें वा उनकी १ हम तो यही मानते हैं कि सत्यभभाषण, अदिखा दया आदि शुभ गुण अब मतों में अच्छे हैं गाती वाद, विवादईय, , मिथ्याभाषणादि कई सब मतों में बुरे हैं। यदि ! दुमको सत्यमत प्रहण की इच्छा हो तो वैदिक मत को ईण करो ॥ इस आगे स्वमन्सल्यान्वव्य का प्रकाश झक्षेप ये लिस्ना जायगा ॥ इति श्रीमदयानन्द सरस्वतीस्वामितते सत्यार्थप्रकाश ! सुभाषाविभूषिते यवनमतविषये चतुर्दशः समुल्लासः सम्पू’ ॥ १४ ॥