पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६२६

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६२४ दत्यप्रकाश: ॥ धधर्मेन्मार्गों की चाह ने अनाथ नेवेल और गुणरहित क्यों न हों उनकी रक्षा, उन्न- | ति, प्रियाचरण और अब मै चाहे चक्रवर्ती सनाथमहावलवार और गुएवान् भी हो । । तथापि ठ का नाश, अवनति और अप्रियचरण सदा किया करे अर्थात् जहांतक इस वहत क अन्यायकारियों के व लकी हानि और न्याय कायरेय के व छकी उन्नति सर्वथा । किया करे, इस कासमें चहउसको कितना ही दारुण दु ख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी भेले ही जर्थी परन्तु इन सत्य पनरूप धर्म से पृथ कभी न होघे, इसमें श्रीमान् महाराजा भतृहरि जी आदि ने तो कई हैं उन का तिखना उपयुक्त समझ कर लिखता हूं: नन्दन्तु दत्तानपुण, यार्ड वा रतुन्नु लक्ष्म: समाश जब्तु व यथम् । अव्व वा आरएमस्तु युगान्तर बा, याकूयारपथः भविचन्ति पदं न धीरः ॥ १ ॥ भतृहरने । न जतु कमान भयान्न लाभद घम जज ( तस्प ता: । धम नियः सुखदुःख रवानस्य, जब नियम हेतुरस्य वानियः ॥ २ ॥ महाभारते । एक एव सुदृद्धमत निधनेश्यनुयाति यः । शरीरेण समं नाश समयद्धि गच्छति ॥ ३ ॥ म: । सत्यमेव जयते नातं सत्येन पथा विततो देवयानः । येनाक्रमन्त्थुपयो हातकामा यत्र तत्सत्यस्य परम निधानम् ।1 ४ !। नदि सत्यात्परो व नानूतापातक परम् । नहि सत्यात्पर ज्ञानें तस्मात् सत्यं मर्यरत् ५ ॥ उ० नि॰ ॥ - ६ महेश या के 6 इलाकों के अभिप्राय 'रखना योग्य 4 ई गत २६t को और २ माना उन २ का वर्णन क्वेष से यहां करता जो निश्चय है । > 3ि में ६० .51r-पार ३ धन्थ में अपने १रण में दिया है उनमें से? के हर हूं