पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६३०

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हैं? स्पाTश: 7 ३, - - - - - - - - २जैसे भार्थी’ , ' दुष्ट मनुष्यों को कहते हैं वैसे 6 मैं भी मेसे 15 -- se ३०-tमार्बाध में र्देश इस भूमि का नाम इसलिये है कि इसमें आदि सुष्टि वे आये लोग निवास करते हैं परन्तु इसकी अवधि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचलपश्चिम में आटक और पूर्व में ब्रह्मपुत्रा नदी है, इन चारों के बीच में iजतन देश है उसको आयोवत्त' ' कहते और जो इसमें सदा रखे हैं उनको भी अवं हर्ष है ! ३१-ज्ञो साझोषाह्न वेदविद्याों का अध्यापक सस्याचार का प्रहण और मिथ्या चार का त्याग करने वह आचार्य' कहता है । ३२-“शिष्य' उसको कहते हैं कि जो सत्यशिक्षा और विद्या को ग्रहण करने योग्य घमदमा, विद्या प्रहण की इच्छा और आचार्य का प्रिय करनेवाला है । ३३-‘गुरु’ माता पिता और जो सत्य का ग्रहण करवे और असत्य को छु9वे वi भी ‘‘गुरु’ कहता है ? । ३४पुरोहित” जो यजमान का हितकारी सत्यपदेष्टा होवे । ३५-“उपाध्याय जो वेदों का एकदेश वा अनों को पढ़ाया हो ! ३६-“शिष्टाचार' जो घमचरणपूर्वक ब्रह्माचर्य से विद्याप्रहण कर प्रत्यक्षादि प्रमार्गों से खत्यालय का निर्णय करके सत्य का ग्रहण असत्य का परित्याग करना है यही शिष्टाचार और जो इसको करता है वह शिष्ट कलाता है ३७-प्रत्यादि ‘अठ प्रम को भी मानता हूं ? ३८ - 'Iप्त’ जो यथार्थवका, घमदमा, संघ के सुख के लिये प्रयत्न करता है। उसी को ‘जात’’ कहता हूं । ३ड -3परीक्षा' पांच प्रकार की है इसमें से प्रथम जो ईश्वर उसके गुएर कम स्वभाव ोर वेद विद्या, दूसरी प्रत्यक्षाद्रि माठ प्रमाण, वीवरी सृष्टिनम, चौथी ग्रा का व्यवहार और पांचवीं अपने आत्मा की पवित्रता विद्या इन पांच परीक्षा कें ) सत्याSदत्य का निर्णय करके सत्य का प्रहण असत्य का परित्याग करना पI -वे ४०-६परोपकार' जिससे अब मनुष्यों के दुराचार दुःख छूटें, ठाच। सदर रन f परप्रकार कहता हूँ ११'’’ ‘परबत्रा जीव अपने काम में स्वतन्त्र और कफल -स्वतन्त्र <

हैं ।

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