पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६५

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+ ५२ ललथप्रकाश. !! क्षत्रिय चंद्र जनो भी विद्या का अभ्यास अवश्य कराव वैश्य और उत्तम को । क्योकि जो ब्राह्माण है वे ही केवल विद्याभ्यास करे और क्षत्रियादि न करे तो विद्या, ' धर्म, राज्य और धनादि की वृद्धि कभी नहीं हो सकती | क्योकि ब्राह्मण तो केवल पढ़ने पढ़ाने और क्षत्रियादि से जीविका को प्राप्त होके जीवन धारण कर सकते है जीविका के आधीन और क्षत्रियादि के आज्ञाढ़ाता और यथावत् परीक्षक इण्ड दाता न होने से ब्राह्मणादि सब बाँ पाखण्ड ह में फंस जाते हैं और जब क्षत्रियादि विद्वान होते हैं तब त्राह्माण भी अधिक विद्याभ्यास और धर्मपथ में चलते हैं और उन क्षत्रियादि विद्वानों के सामने पाखण्ड भूठा व्यवहार भी नहीं कर सकने और क्षत्रियादि अविद्वान् होते हैं तो वे जैसा अपने मन में आता है जब वैसा ही करते कराते है । इसलिये त्राह्मण भी अपना कल्याण बाहें तो क्षत्रियादि को वेदादि सयशास्त्र का अभ्यास अधिक प्रयरन से करवं । बोंकि क्षत्रियादि ही विद्या धर्म रक्य और लक्ष्मी की वृद्धि करनेहारे हैं, वे कभी भिक्षावृत्ति नहीं करते ' इसलिये वे विद्याठ्यवहार से पक्षपाती भी नहीं हो सकते और जत्र सब वर्षों में विद्या सुशिक्षा होती है तब कोई भी पाखण्डरूष अधर्मयुक्त मिथ्या व्यवहार को मैं नहीं चला सकता । इससे क्या सिद्ध हुआ कि क्षत्रियादि को नियम से चलानेवाले ब्राह्मण और संन्यासी तथा ब्राह्मण और संन्यास को सुनियम में चलानेवाले क्ष - त्रियादि होते हैं इसलिये सत्र वर्षों के बी पुरुषों से विद्या और धर्म का प्रचार अवश्य होना चाहिये । अब जो २ पढ़ना पढ़ाना हो वह २ अच्छे प्रकार परीक्षा करके होना योग्य है—परीक्षा पाच प्रकार से होती हैं। एक-जो २ईश्वर के गुण कर्मस्वभाव और बे दो से अनुकूल हो वह २ सत्य और उससे विरुद्ध असत्य है। दूसरीजो २ विक्रम से अनुकूल वह २ सय और जो दृष्टिक्रम से विरुद्ध है वह ' सब असत्य है जैसे कोई कहे कि विना माता पिता के योग से लड़का उत्पन्न हुआ ऐसा कथन सठिक्रम से विरुद्ध होने से असत्य 1 -“ है तीसरी आप्त' अथोत् जो बार्भिक, विद्वान, सत्यवादी, निप्पटियों का संग उपदेशा के अनुकूल है वह २ ग्राह्य और जो २ विरुद्ध वह २ अग्राह्य है। चौथी-अपने आत्मा की पवित्रता विच के अनुकूल अर्थात् जैसा अपने को सुख प्रिय और टु ख आप्रिय ही सर्वत्र है वैसे समझ लेना कि मैं भी किसी को दुख का सुख ढूंगा तो वह भी अप्रसन्न और प्रसन्न होगा । और प, ची-आठ प्रसाणा अन् प्रत्य, अनुगान, उपमान, शब्द, ऐतिह्य, अ थपत्ति, सम्भव और प्रभाव इनस से प्रत्यक्ष के लक्षणादि से जो १ सूत्र नीचे लिखेंगे २ न्यायास्त्र के प्रथम और द्वितीय अध्याय के जानो ॥ से ध