पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/६८

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तृतीयसमुला स: ॥

जा ऐसे पुरुष और पूर्ण आप्त परमेश्वर के पदंश चंदु हैं उन्हीं का शब्दुप्रमाण ! जाना । पांचवां ऐतिह: न चतुष्मैतिह्मापत्तिसम्भवाभावप्रामाण्यात् । न्याय० के श्र० २। आ० २ । सू° १ ॥ जो इति अर्थात् इस प्रकार का था उसने इस प्रकार किया अर्थात् किसी ? के जीवृनचरित्र का नाम ऐतिह्य है । ’ - छठा अथपत्ति: --- अदापद्यते सा अपत्ति: ‘सत्यु घनेजु . साति ।

केनचिट्ठच्यूसे दृष्टि कार एं

कार्य भवतीति किम प्रसष्यो, असत्यु घने ऋष्ठिरसति कारगे च कार्य न भवति' 1 किसी ने किसी से कि ‘से और कारण के से जस कहा बादल के होने वष होने कार्य उत्पन्न होता है इससे विना कहे यह दूसरी बात सिद्ध होती है कि विना ने बादल वर्षों और बिना कारण कार्य कभी नहीं हो सकता ॥ सातवां सम्भव:-- 'सम्भवत यास्मन् म सम्भव:' कोई कहे कि ‘‘माता पिता के विना सन्तान- पत हुई, किसी ने मृतक जिलाये, पहाड़ उठाये, समुद्र से पत्थर तरायेचन्द्रमा के 5 टुकड़े किये, परमेश्वर का अवतार हुआ, मनुष्य क सींग देखे अर बन्ध्य क के पुत्र और पुत्री का विवाह किया” इत्यादि सब असम्भव हैं क्योंकि ये सब बाते सट- क्रम से विरुद्ध हैं । जो बात सष्टिक्रम के अनुकूल हो वही सम्भव है । वर्ष ठवा छभव: k t: है जैसे किस ने फिर से कहा कि न भवन्त यtस्म सISव ( ले आ व वहां हाथी का अभाव देखकर जद्द हाथ था वहां से ले जाया । वे आठ प्रसाण । इनमें से जो शब्द में ऐतिह्य और अनुमान म अथापांत्रो मम्भव अभाव की गणना करें तो चार प्रम।ण रह जाते हैं । इन पाच प्रकार की पr t। से संतुष्य सत्यासत्य का निश्चय कर स कता है अन्था नहीं ।