पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/७५

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वक की हालत की जा सकी ६२ सत्यप्रकों । कारण अर्थात् अवयवो मे अवयवी कार्यों में क्रिया क्रियावा गुण गुणी जाति व्यक्ति कार्य कारण अवयव अवयवी इनका निस्य सम्बन्ध होने से काता। समवाय है और जो दूसरा द्रव्यों का परस्पर सम्बन्ध होता है वह सयोग अर्थात् अनिय सम्वन्ध है ! द्रव्यगुण्योः सजातीयारम्भकवं साधर्यम् ॥ वै० । अ० १ ( श्रा० १ । स० & ॥ जो द्रव्य और गुण का समान जातीय कार्य का प्रारम्भ होता है उसको सधम्र्य कहते है । जैसे पृथिवी में जड़ध धर्म और घटादि का पादकत्व स्वसदृश धर्म है वैसे ही जल में भी जडव और हिम आदि स्वसईश कार्य का आरम्भ 1 पृथिवी के साथ जल का और जल के साथ पृथिवी का तुल्य धर्म है अत् ‘द्रव्य- गुएोजितयारम्भकवं वैघर्थ यह विदित हुआा है कि जो द्रव्य और गुण का विरुद्ध धर्म और कार्य का आरम्भ है उसको वैधम्र्य कहते हैं जैसे पृथिवी में कठिनय शुकत्व और गन्धवत्व धर्म जल से विरुद्ध और जल का द्रवत्व कोमलता और रस गुण्युक्तता पृथिवी से विरुद्ध है। ।

कारणभावात्का५भावः ॥ वै० 1 अ० ४ आ० १ । सू° ३ ॥ कारण के होने ही से कार्य होता है । न तु कार्याभावात्कारणाभावः ॥ वै०। अ० १ । आा० | २ I २ ॥ है के भवि म कर का भाव हता ॥ कारणाSभावात्काsभावः ॥ आ श्र ० । आ० । वें ० से १ २ ॥ १ । गत गा के न होने से कार्य कभी नहीं होता है कनगुणकः कार्यगुणो दृष्टः ॥ वै०। अ० २ 1 छा° १ से २ २४ ॥ से ड्रा में नए होते वैसे ही कमर्च में होते हैं। परिमाण दो प्रकार का हैं-