पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८०

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तृतीयसमुल्लास’ ६७ 3,

_ हैं : भ+घ+ इस प्रक.र धधर के प्रथम व फ़ार का फिर का लोप होकर भ++छ ऐसा रहा फिर आय को आकार वृद्धि और ज् के स्थान में ‘‘" होने से ‘भा+श्र+ड’ पुनः आकार म मिल जाने से 'भाग+स" रहा अब उकार की ३क्षा ‘‘स्' के स्थान में रु’’ होकर पुन: प्रकार की इन्संज्ञा लोप होजने पश्वात् भग ऐसा रहा अघ र के स्थान में ( : ) वि ाऊँनीय होकर ‘‘भाग:" यह रूप सिद्ध हुआ । जिस २ सूत्र से जो २ कार्य होता है उस २ को पढ़ पंढा के अर लिस्यवा कर कार्य करता जाय इस प्रकार पढने पढ़ाने से बहुत शीघ्र दृढ़ बोध होता है । एक बार इसी प्रकार अष्टाध्यायी पढ़ा के धातुपाठ अर्थसहित और दश लारों के रूप तथा प्रक्रिया सहित सूत्रो के ३री आथोर्न सामान्य सूत्र जैसे कमेयण" कर्भ उपपद लगा हो तो धातुन से आए प्रत्यय हो जैसे ‘*कुम्भकार:" पश्वात् अपवाद सूत्र जैसे आतIsनुपसरों : उप भिन्न कर्म उपद लगा हो तो आकारन्त धातु से ‘क’ स्य होवे अर्थात् जो बहुध्यापक जैसा 1 कॉपपद लगा हो तो सय धालु ों से ‘‘अ’ प्राप्त होता है उससे विशेष अर्थात् अस्प विषय प्रत्यय उसके पूर्व सूत्र के विषय में से आकारन्त धातु का ‘क’ ने ग्रहण कर

  • लिया जैसे उत्सर्ग के विषय में अपवाद सूत्र की प्रति होती है वैसे अपवाद सूत्र के

विषय में उत्सर्ग सूत्र की प्रवृत्ति नहीं होती । ले चक्रवर्ती राजा के राज्य में स। ण्डलिक और भूमिवालों की प्रवृत्ति होती है वैसे सम।ण्डलिक राजदि के राज्य मे चक्रवर्ती की प्रवृत्ति नही होती इसी प्रकार पाणिनिमहर्षि ने सहन श्लोकों के बीच में अखिल शब्द अर्थ और सम्पन्धों की विद्या प्रतिपादित करती हैं । धातुपाठ के पश्चात् उणादिगण के पढ़ाने में सर्व सुघन्त का विषय अच्छे प्रकार पढ़। के पुन: दूसरी वर शद्दासमाधान, बाकि, करिका, परिभाषा की घटना पूर्व क, आ टाध्यायी की द्वितीयाउद्यत्ति पढ़।वे। तदनन्तर महाभाष्य पढाबे बुद्धिमान् । अथॉ जो ' पुरुषार्थी, निष्कपटी, विद्यवृद्धि के चाहनेवाले नित्य पढे पढखें तो डेढ़ वर्ष में अ

  • टाध्यायी और डेढ़ वर्ष में महाभाध्य पढ़ के तीन वर्ष में पूर्ण वैया होकर

वैदिक लौकिक का स कर अन्य को शीन और शब्द व्य।करण बोध पुन: शाचों परिश्रम व्याकरण में होता है सहज मे पढ़ पढ़ा सकते हैं किन्तु जैसा बड़ा कैंसर ‘ श्रम अन्य शछों नही पड़ता और रजत ना बोध इन तीन में करना पढ़ने से वर्दी में के होता है उतना बोध कुप्रन्थ अर्थात् सारस्वत, चन्द्रि का, कौमुदी, मनोरमाद्रि पढ़ने से स६ मत, । पास वर्षों में भी नही हो सकता क्योंकि जो महाशय महर्षि लोगों ने से