पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८१

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moun tadunalain- सत्यार्थप्रकाशः ॥ महान् विषय अपने ग्रन्थों में प्रकाशित किया है वैसा इन क्षुद्राशय मनुष्यों के कल्पित अन्धों में क्योंकर हो सकता है महर्षि लोगों का श्राशय, जहातक होसके बहातक सुगम और जिसके ग्रहण में समय थोड़ा लगे इस प्रकार का होता है और क्षुद्रा. शय लोगों की मनमा ऐसी होती है कि जहांतक बने वहातक कठिन रचना करनी जिसको बड़े परिश्रम से पढ़ के अल्प लाभ उठा सकें जैसे पहाड़ का नोदना कौड़ी का लाभ होना । और आर्ष अन्यों का पढना ऐसा है कि जैसा एक गोवा लगाना बहुमूल्य मोतियों का पाना । व्याकरण को पढ के यास्कमुनिकृत निघण्टु और निरुक्त छ वा आठ महीने में सार्थक पढें और पढ़ावें । अन्य नास्तिककृत अमरकोशादि में अनेक वर्ष व्यर्थ न खावें तदनन्तर पिङ्गल चार्यकृत छन्दोग्रन्थ जिससे वैदिक लोकि छन्दों का परिज्ञान नवीन रचना और श्लोक बनाने की रीति भी यथावत् सीखें इस ग्रन्थ और श्लोकों की रचना तथा प्रस्तार को चार महीने में सीख पढ़ पढा सकत है। और वृत्तरत्नाकर आदि अल्पवुद्धिप्रकल्पित प्रन्धों में अनेक वर्ष न खावें । तत्पश्चात् मनुस्मृति वाल्मीकीयरामायण और महा- भारत के उद्योगपर्वान्तर्गत विदुरनीति आदि अच्छे २ प्रकरण जिनसे दुष्ट व्यसन दूर हों और उत्तमता सभ्यता प्राप्त हो वैसे को काव्य रीति से अर्थान् पदच्छेद, पदार्थोक्ति, अन्वय, विशय विशेषण और भावार्थ को अध्यापक लोग जनावें और विद्यार्थी लोग जानते जायें इनको वर्ष के भीतर पढ़लें तदनन्तर पूर्वमीमांसा, वैशेपिक, न्याय, योग, साख्य ओर वेदान्त अर्थात् जहांतक बन सके वहांतक । ऋषिकृत व्याख्यामहित अथवा उत्तम विद्वानों की सरलव्याख्यायुक्त छः शाखों का पढ़ें पढ़ावें परन्तु वेदान्त सूत्रों के पढने के पूर्व ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक,

माक्य, एतस्य, नेत्तिरीय, छान्द ग्य और बृहदारण्यक इन दश उपनिषदों को

पढ के छ: शास्त्रों के भाग्य वृत्तिमहित सूत्रों को दो वर्ष के भीतर पढावें और पद लवे पश्चान् छः वर्षों के भीतर चारों ब्राह्मण अर्थान् एतरेय, शतपथ, नाम और गोपथ ब्राह्मणों के सहित चारों वेदों के स्वर, शब्द, अर्थ, सम्बन्ध तथा क्रियासहित पढ़ना याग्य है । इनमें प्रमाणः - । स्थाणरयं मारहारः किला दधीत्य वेई न विजानाति योऽर्थम् । वाऽर्थज इत्सकलं भद्रमश्नुते नाकमति ज्ञान- विधून पाया ॥ निरुक्त १ । १८ ॥ JamPAWEREMORMAn mmmmmman - -