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सत्यथप्रकाश: 15

दूसरा प्रजा सम्बन्धी । में के अध्यक्ष शबाविद्या होता है राजकार्य सत्र सेना नाना प्रकार के व्यूहों का अभ्यास अर्थात् जिसको आजय ल 'कायद" कहते . जो कि शत्रुओं से लड़ाई के समय में क्रिया करनी होती है उनको यथावत् सीखें । और जो २ प्रजा के पालन और वृद्धि करने का प्रकार है उनको सीख के न्याय के

पूर्वक सय प्रजा को प्रसन्न रक्खें छुटों को यथायोग्य दण्ड श्रेष्र्यों के पालन का प्रकार

1 सब प्रकार सीखतें इस राजविद्या को वो २ वर्ष में सखिडकर गान्वर्ववेद कि ! जिसको ग।वि द्या कहते हैं उसमें स्वर, राग, गि।णी, समय, ताल, माम, तन बावित्र, नृत्य, गीत आदि को यथावत् सीखें परन्तु मुख्य कर के सामवेद का गान वादिन दनपूर्वक सीखें और नारदसहिता आदि जो २ आर्ष ग्रन्थ हैं उनको पर्दे ! परन्तु भ8वे वेश्या और विषयाशफिर क वैरागियों के गर्दभशव्द्वत् व्यर्थ आमलाप कभी न करें 1 अर्धचेद कि जिसको शिल्पविद्या कहते हैं उसको दुर्य गुण विज्ञान , क्रिया शल तानाविध पदों का निर्माण पृथिवी से ले के आकाश पर्यक्त की विद्या ? को यथावत् सीख के अर्थ अर्थात् जो ऐश्वर्य को बढ़ानेवाला है उस विद्या को सीख के दो वर्ष में ज्योतिष शास्त्र सिद्धान्त।देिं जिसमें बीजगणित, अक, , खगोल और भूगर्भविद्या है इसका यथावत् सीखें तत्पश्चात् सत्र प्रकार की इस्त- क्रिया यन्त्रकला आदि को सीखें १रन्तु जितने , नक्षत्र, जन्म प, रशि, मुलू , ' आदि के फल के विधायक प्रन्थ हैं , उनको झठ समझ - कभी न पड़ें और पढ़ायें ऐसा प्रयन पढ़ने और पढानेवाले करें कि जिसे बीस या इकीस वर्ष के भीतर समन विद्या उत्तम शिक्षा प्राप्त होके समुय लोग कृतकृत्य होकर सदा आनन्दु में ! हैं जितनी विद्या इस रीति से बीस व इफीस वर्षों में हो सकती है उतनी अन्य प्रकार से शतवर्ष में भी नहीं हो सकती ॥ - 3 - ऋषिप्रपति प्रन्थों को इस लिये पढ़ना चाहिये कि वे बड़े विद्वान् सत्र शास्त्रविद्र और धमा थे और अनषि अर्थात् जो अल्प शान पड़े हैं और जिनका अरमा पक्षपातसहित है उनके बनय हुए श्रन्थ भी वैसे ही हैं । पूमीमांसा पर ब्यासमुनिकृत व्याख्या, वैशेषिक पर गौतममुनिकृत, न्याय- सूत्र पर वात्स्यायनमुश्कृित भष्य, पत्त बलमुनिकृत सूत्र पर व्यासमुनिक्कृत भाज्य, कपिलमुनित सांख्य सूत्र पर भागुरि मुनिकृत भावव्यासमुनिकृत वेदान्त सूत्र पर वात्स्यायनमुनिकृत भय अथवा बाँटायनमुनिकृत भाष्य वृत्ति सहित पड़े पढ़ाने इत्यादि सूत्रों को कल्प अन्न से भी गिनना चहिये जैसे ऋग्य, सास और अथर्व