पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८४

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तृतीयसमुद्दास: ॥ ल , से की , न कि चारों वेद ईश्वरफुत हैं वैसे ऐतर, शतपथ, सास और गोपथ चारों त्राह्माणशिक्षा, कप , गाकरण, निघण्ड, निरु क्त , छन्द और ज्याi ति छ: वेदों के अद्भ, म सादि छः शव वेदों के उप'न, आयुर्वेदधनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थवेद ये चार वेदों के उपवेद इत्यादि सघ ऋषि मुनि के किये ग्रन्थ हैं इनमें भी जो २ वेदविरुद्ध प्रतीत हो इस २ को छोटू हेमा कपोकि वेद ईश्वरकृत होने से निर्धान्त स्वतप्रमा ए अर्थात् वेद का प्रमाण वेद ही से होता है ब्राह्मणादि सत्र ग्रन्थ पर त:प्रमाण अवैन इन ता प्रमाण वेदधीन है वेद को विशेष व्याख्या ऋग्वेद दिभाज्यभूमिका में देख लें, झथ और इस ग्रन्थ से भी आगे लिखेंगे । अब जो परियाग के योग्य ग्रन्थ हैं उनका पति गणन संक्षेप से किया जाता है अर्थात् जो २ नीचे ग्रन्थ लिखेगे वर्षा २ जालग्रन्थ ममझना चाहिये । व्याकरण में कातन्त्र, सार स्वत, वन्द्रिका, मुग्धबोध, कौमुदी, खर, मनोरम दि । कोश में आमर कोडि 1 छन्दोग्रन्थ से गृत्तरत्नाकरादि में शिक्षा में अथ शिक्षा प्रवक्ष्य मि पाणिनीशु मसं यथा इत्यादि । ज्योतिष मे शीबोधमुहूर्वोचन्तामाण आदि । काठ्य में नयाभेद, फुत्र लगानन्द, रघुवंश, माघ, किगताजनी यादि । मीमांमा में धमसिंधु, त्रताकदि । वैशेषि में तर्कस ड्हादि । न्य।य में जागरूशिी आदि । योग में हठदीपिकादि 1 सांख्य से सांख्यतत्व कौमुद्यादि । वेदान्त मे योगबसिष्ठ पच- दृश्य।दि । वैदिक में शाधदि ने स्मृतियों में मनुस्मृति के संक्षिप्त लो और अन्य सश्र स्मृति, संत्र तत्र प्रन्थ, सब पुराणसत्र डrण, लू न नीदास से भा पारामायणरुक्मिणीमझ लाद और सर्व भाषाप्रन्थ ये सब कपोल काल्पत किया ग्रन्थ हैं ( एन ) क्या इन ग्रन्थों में कुछ भी सत्य नहीं है ( उतर ) थोड़ा सत्य तो है पन्तु इसके साथ बहुत मा आ सत्य भी है इससे ‘वि सम्पृक्तानव त्याज्या: जी से अत्युत्तम अन्न विप से युक्त होने से छोड़ने योग्य होता हैवसं ये प्रन्थ हैं ( प्रश्न ) क्या आप पुराण इतिहास को नहीं मानते ? ( उत्तर ) हां मानते हैं परतु सस्य को मानते हैं मिथ्या को नहीं ( प्रश्न ) कौन सत्य और कौन मिथ्या है ' ( उतर ): ब्राह्मणानीतिहासन् पुरणानि कल्पान् गाथा नाराशं- 3 - सरत । यह ग्रह्मासूत्रादि का वचन है। जो ऐतरेय, शतपथादि ब्राह्माण लिख आये उन्हीं