पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८५

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- ७२ सत्यार्थप्रकाश: ? के इतिहाम, पुराण, कल्प, गाथा और नागमी पांच नाम हैं श्रीमद्भागत्रतादि का । नःम पुगण नहीं मन ) जो स्याज्य प्रन्थों में सत्य है उसका प्रहण क्यों नहीं करते ? ( उत्तर ) जो २ इनमें सत्य हैं सो २ वेदादि समय शाह्नों का है और मिथ्या है वह अन घर का है वेदादि सत्य शासों के स्वीकार में सक्ष सत्य का प्रहण हो जाता है जो के ई इन मिथ्या ग्रन्थों से सत्य का प्रहण करना चाहे तो सिया भी उसके गले लिपट जाव इसलिये असमस्यमि सयं रतस्त्याज्यामिति' " असत्य से युक प्रन्थस्थ सस्य का भी वैसे छ ड़ देना चाहिये जैसे विषयुक्क अन्न को, । ( प्रश्न ) तुम्हारा मत क्या T है ? ( उत् ' वे द अब १क् ो २ वेद में करने और 1 | छोड़ने की शिक्षा की है अम २ का हम य ा। व I कहना छोडना मानत हैं जिलिय वे को मान्य है इसलिये हमारा मत वेद है ऐसा ही मानकर सव मनुष्यों को विशेष आकर्षों को ऐनस्य हाई रहना चाहिये ( प्रश्न मा सरासर । कम और रे प्रन्थों का परस्पर विरोध है वैसे अन्य शाकों में भी है जैसा शिविषय में छ ात्रा का विरोध है -मीमांमा कर्म, वैोषि क काल न्याय परमाणु योग पुरुपार्थ, मांस्य प्रकृति और वेदान्त ब्रह्म से सृष्टि की उत्पत्ति मानता है क्या यह ? विरोध नहीं है ? ( उत्तर ) प्रथम तो विना सारूण अ वे शान्त के दूम रे चार ! शास्त्रों में पुष्टि की उरगत्ति प्रसिद्ध नहीं लिखी और इनमें विरोध नहीं क्योंकि | तुमको विरोधविराध का ज्ञान नहीं । कि । में तुमसे पूछता हूं विरोध क्रिम स्थल 1 में हता है १ ग्र। एक विषय में अथवा भिन्न २ विषयों में १५ रन ) एक विषय में अनेकों का परस्पर विरुद्ध कथन हो उसको विरोध कहते हैं यहां भी सृष्टि एक ! ही विषय है , अत्तर ) क्या विद्या एक है वा दो, एक है, जो एक है तो व्याक रण, वट, तिष आदि का भिन्न ३ विषय क्यों है जैसा एक विद्या मे अनेक विद्या के अवयवों का एक दूसरे से भिन्न प्रतिपादन ोता है वैसे ही सृष्टिविद्या के भिन्न भिन्न छ अवयवों का शास्त्रों में प्रतिपादन करने से इनमें कुछ भी विशेष नहt जैसे घर के बनाने में कम समय, मिट्टी, विचार, संया, वियं ।गादि का पु. पार्थ, प्रगति के गुण और कुंभार कारण है वैसे ही सृष्टि का जो कमें कारण है डसन फी व्याख्या मीमांसा में, समय क्री ग्राख्या वैशेषिक में, उपादान कारण की व्याख्मक ' न्याय में, रुप र्थ की व्याख्या योग में तत्वों के अनुक्रम से परिगणन की ज्यादा न्य में और नि मलकारण जो परमेश्वर है उसकी व्याख्या वेदान्तशार में है 1 मसे कुछ भी विरोध नहीं । जैसे बैंकशास्त्र में निदान, चिकित्सा