पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८७

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७४ साथिा. ! - . त्री और गृढ़ न पढ़े यह श्रुति है (उत्तर ) सब स्त्री और पुरुष अन् मनुष्यमान को पढ़ने का अधिकार है । तुम कुआ से पडो और यह श्रुत्ति तुम्हरी कपोल कल्पना से हुई है किसी प्रामाणिक ग्रन्थ की नी1 और सघ मनुष्य के वेद्यादि शास्त्र पढ़ने सुनने के अधिकार का प्रमाण यजुर्वेद के छब्बीसवें अध्याय में दूसरा मन्त्र है: यथम वार्च कल्याणमावदानि जनेय। ब्रह्म।जन्याभ्या७ शूद्राणु चायप स्ाय चारंणय ॥ यजु० अ० २६। २ ॥ परमेश्वर कहता है कि ( यथा ) जैसे में ( जनेभ्य ) सब मनुष्य के लिये ( इसा ) इस ( कल्याणीम ) कल्य।ण अर्थात् संसार और मुक्ति के मुख देनेहारी A ( वाचम् ) ऋग्वेदादि चारों वेदो की वाणी का ( आ, बवानि ) उपदेश करता । } भी किया को 1 यहां कोई ऐसा प्रश्न करे कि जन शब्द से द्विजो का वस तुम 3 ग्रहण करना चाहिये क्योकि स्मृत्यादि प्रन्र्यों में ब्राह्मण, क्षत्रियवैश्य ही के वेटो के पढ़ने का अधिकार लिखा है स्त्री और प्रात्रि वर्गों का न ( उत्तर ( ब्रह्म राजन्याभ्याम ) इत्यादि देखो परमेश्वर स्वयं कहता है कि हमने ब्राह्मणक्षत्रिय ( आयय ) वैश्य ( ट्राय ) शद्र और ( स्वाय ) अपने नृत्य वा स्त्रियादि (अर- णय ) और अतिशूद्रादि के लिये भी वेदों का प्रका क्रिया है अन् सब मनुष्य वेत्रों को पढ़ पढ़ा और सुन सुनाकर विज्ञान को बढ़ा के अच्छी बातो का ग्रहण और बुरी बातों का त्याग करके द्र खों में छूट कर आानन्द को प्रात हर । कहिये । अब तुम्हारी बात सुन व परमेश्वर की 7 परमेश्वर की बात अवय मानतीय है । इतने पर भी जो कोई इसका न मानेगा वह नाम्तिक कहावेगा क्योंकि ‘नास्तिको वेनिन्दक चंदो का निन्दक और न साननेवाला नास्तिक कहाता है । क्या परमेर शूद्र का भल करना नही चाहता है क्या वर पक्षपाती हूं कि वेदों के पढ़ने चुनने का शूद्रों के लिये निषेध और द्विजों के लिये विधि करे ? जो परमेश्वर का अभिप्राय शूद्रादि के पढ़ाने सुनाने का न होता तो इनके शरीर में वा और क्षेत्र इन्द्रिय क्यों रचता जे से परमात्मा ने पृथिवी, जलअग्नि, वायु चन्द्र, सूर्य और अन्नादि पदार्थ व के लिये बनाये हैं वैसे ही वेद सजी सव क : लिये प्रकाशित किय जा निध किया है और कई है उसका अभिप्राय है कि यह जिसको पढ़ने पढने स कुछ भी न आावे वह निर्बुद्धि और सूखे होने से शूद्र कहता ह : ८ : का पढ़ना पढ़ाना घx है और जो चिों के पढ़ने का निषेध करते वो मृत, निर्बुद्धिता का प्रभाव देखो वेन्द्र कन्या वह नम्हारी स्वार्थता और है में हैं - पढन का ए