पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८९

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सत्यप्रकाश यदि ये वैना करना कंगना वैवविद्या : से औषधवन औन्न पान बनाना और घनघाना न कर सकती जिससे घर से रोग कभी न आने और सब लोग सट्टा मानन्दित रहें शिल्पत्रिशा के जन बिना घर का वनवाना, वन आभूषण आादि का बनाना बनवाना, गणितविद्या के बिना सब का हिसाब समझना समझाना, वेदा दि डाघविद्या के विना ईश्वर और धर्म को न जानके अधर्म से कभी नहीं बच स 1 इसलिये वे ही धन्यवादाई और कृतकृत्य है कि जो अपने सन्तानों को नह- र्ष य, उत्तम शिक्षा आर विव स रंjर आर आत्मा के पुण व का बढ़ाव जिसस व मन्ताम मातपि, पति, सासुधरराजा, प्रजा, पड़ोसी, इष्ट मित्र और ? सन्तान।दि से यथायोग्य धर्म से वर्दी । यी को अक्षय है इसको जितना व्यय करे : उतना ही बढ़ता जाय अन्य सव कोश व्यय करने से घट जाते है और दायभागी भी निज भाग लेते हैं और विद्याको का चोर वा दायभागी कोई भी नही हो मता में काम की रक्षा और श्रुट्टेि करनेवाला विशेष राजा और प्रजा भी हैं । कन्यामां सम्प्रदान व कुसारां व रक्षणम् ।म ७ से १५२ ॥ राजा का बाग्य है कि सब का और लड़कों को उक समझ से उक्त समय वसंत नाई म रखके विद्वान करता जो मोई स आज्ञा को न सने ता उसके 1 माता पिता को ण्ड देना अभ्न् राजा की आज्ञा से आठ वर्ष के पश्वान लड़ का या लट की किसी के घर से न रहने पावें किन्तु आ।चार्ल्डकुल में रहें जबतक समाव- तन का मथ न आने तबतक विवाह न होने पावे ॥ सवाल दानानां लदानं विशि यते । वार्यान्न गोमहीवासस्तिलकाचनपिंया ॥ मनु० 81 २३३ ॥ ! भर से जितने नई ', , सुद ट प्रथॉन् जल, अन्नगौ, पृथिवी, वनतिल, और इन सेव द ने का दृान अतिक्रेट है । इसलिये जितना । नव चेविद्या वन सर तन, मनविद्या ही वृद्धि कक्षा देश में ? मैंने धन में म करें , जिस धान य : इन द चिता प्रोव वेदोक्त वर्ग को चार होता है वह देश सभग्य 84 : IE . ठा चय-सम की 1ी सप ' लिखी गई है इस आग मद्रास के ५१३नम र, दादरी शिक्षा लिखी जायगी !! 'रे, की इति मइयानन्दसरस्वतीमस्ज़िते सस्यार्थीप्रकाश मुभापाविपिते शिलाविपये तृतीयः समुनाः रघुएः ॥ ३ ॥ में इन m