पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

से अथ चतुर्थसमुल्लासारः॥ ( डिंडों स्टूडेंट सेल के अs s sों $ के उद्दे से 5 बजे टैं दूर ) अथ समावर्तनविवाहटहाश्रमविधि वक्ष्यामः ॥ वंदानीय वद व बंद वाप यथाक्रम । अविप्लुतब्रह्मचर्य ग्रहस्थाश्रममाविोत् ॥ मनु० ३।२ ॥ यथावत् ब्रह्मचर्य से आाचार्यानुकूल बतृकर धर्म से चारोंतीन व दो हे ‘अथवा एक वेद को साङोपाङ्ग पढ़ के जिसका ब्रह्मचर्य खण्डित न हुआ हो वह से पुरुष बा छत्री ग्रहाश्रम मे प्रवेश करे । तं प्रतीत स्वधर्पण ब्रह्मदायहर पितुः। खाग्विर्ण तल्प आासीनसहयप्रथम गवा ॥ मनु० ३ ।२ ॥ जो स्वधर्म अर्थात् यथावत् आचार्य और शिष्य का धर्म है उससे युक्त पिता जनक व अध्यापक से नदाय अर्थात् विद्यारूप भाग का ग्रहण और माला का धारण करनेवाला अपने पलन में बैठे हुए को आचार्य प्रथम गोदाम से सस्कार करे वैसे लक्षणयुक्त विद्यार्थी को कन्या का पिता भी गोदाम से सरकृत करे । गुरुणानुमत स्नात्वा समोवृत्तो यथाविधि । उद्वहत द्विजो याँ सब लक्ष।न्धिता । म॰ ३ ' ४ ॥ गुरु की आज्ञा ले स्नान कर गुरुकुल से अनुक्रमपूर्वक आा के त्रासद, क्षत्रिय वैश्य अपने बर्णानुकूल बुन्दर लक्षणयुक्त कन्या में विवाह करे l । भारतीय जीवन बीमारी सवार