पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९१

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सीपण्डा व या मातुरसगोत्रा व या प' । सा प्रशस्ता द्विजातीन दरकनेरीि सैने स॰ से ५ ॥ जो कन्या माता के कुल की छ. पीढियो मे न हो और पिता के गोत्र की न हो उस कन्या से विवाह करसा र चत है। सका यह प्रयोजन है कि : परोक्षप्रिया इव हि देवः प्रत्यक्षद्घिः । शतपय० ॥ यह निश्चित बात है कि जैसी परो पदार्थ में प्रीति होती है वैसी प्रत्यक्ष में नही जैसे किसी ने मिश्री के गुण सुने हों और खाई न हो तो उसका सन उसी में लगा रहता है जैसे किसी परोक्ष वस्तु की प्रशंसा सुनकर मिलने की उत्कट ! इच्छा होती है वैसे ही दूरस्थ अयनू जो अपने गोत्र वा माता के कुल में निकट सम्बन्ध की न हो सी कन्या से वर का विवाह होना यहिये निकट औौर । दूर विवाह करने में गुण ये है - ( ए ) एक-—जो बालक बाल्यावस्था से निकट रते हैं परस्पर क्रीड़, लड़ाई और प्रेम करते एक दूसरे के गुण दोष खरव या बाल्यावस्था के विपरीत आचरण जानते और जो नहूं भी एक दूसरे को देखते हैं। उनता परस्पर विवाह होने से प्रेम कभी नही हो सकता, ( २) दम -जैसे पानी में पानी मिलने से विलक्षण गुण नहीं होता वैसे एक गोत्र पिट वा सातृकूल में विवाह होने में धातुओं के अल बदल नहीं होने से उन्नति नहीं होठी, ( ३ ) तीसरा—जैसे दूध म मिश्री वा जुयादि औषधियों के योग होने से उत्तमता होती है वैसे ही भिन्न गोत्र सात पिन कुल से पृथक् वर्तमान बी पुरुषो का विवाह होना उत्तम है, ( ४ ) चौथा-जैसे एक देश में रोगी हो वह दूसरे देश में वायु और खान पान के बदलने से रोगरहित होता है वैसे ही दूर देशस्थो के विवाह होने में उत्तमत है, ( ५) पांचवें-निकट सम्बन्ध करने से एक दूसरे के निकट होने में मुख दुख का भान और विरोध होना भी सम्भव है दूरदेशास्थयों में नहीं और दूर- स्थो के विवाद में दूर २ श्रम की डोरी लम्घी जाती है निकटस्थ विवाह में | बढ़ नहीं, ( ६ ) छठे-दूर २ देश के पदार्थों की प्राप्ति भी वर्तमान और दूर सम्बन्ध होने में सहजता से हो सकती है निकट विवाह होने में सर्दी इसीलिये: दुहित दुहिता रेहिता दोग्षेव ॥ निरु० ३। ४ ॥ .. । कन्या का नाम दुहिता इस कारण से है कि इसका विवाह दूर देश में होने से हितकारी होता है निकट रहने में नहीं. (७ ) सातवें-कन्या के पितृकुल में दारिश होने के