पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुर्थसमुल्लास: । ७९ से । का भी सम्भव है क्योकि जघ २ कन्या पितृकुल में आवेगी तब २ इसको कुछ न कुछ देना ही होगा, ( ८ ) आठवां-कोई निकट होने से एक दू मरे को अपने २ पितृकुल के सहाय का बगण्ड और जघ कुछ भी दोनो में वैमनस्य होगा तब बी झट ही पिता के कुल में चली जायगी एक दूसरे की निन्दा अधिक होगी और विरोध भी, क्योकि प्राय: नियों का स्वभाव तीक्ष्ण और मृद्ध होता है इत्यादि कारणों से पिता के एक गोत्र माता की छः पीढ़ी और समीप देश से विवाह करना अच्छा नहीं ॥ महान्त्यपि समृद्धानि गोsजात्रिधनधान्यतः । । स्त्रीसम्बन्धे दशैतालि कुलानि परिवर्जयेत् ॥ मनु० ३ । ६ ॥ चाहे कितने ही धन, धान्य, गाय, अजा, हाथी, घोड़ेराज्य, श्री अादि से समृद्ध ये कुल हों तो भी विवाहसम्बन्ध में निम्नलिखित दश कुल। का त्याग करदे: हीनक्रिय निष्पुरुष निश्छन्दो रोसशास। तथ्यामयाव्यपस्मारिश्विकृष्टिकुलानि च ॥ मनु० ३ 1 ७ ॥ जो कुल सक्रिया से हीन, सत्पुरुष से रहित, वेद॰ययन से विमुख, शरीर पर बड़े २ लोम अथवा बवासीर, क्षयी, दमा, खांसी, आमाशय, मिरगी श्वेतकष्ठ ! और गलितकुयुक्त ो, उन कुल की कन्या वा वर के साथ विवाह होना न चाहिये । क्योंकि ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करनेवाले के कुल में भी प्रविष्ट हो जाते हैं इसलिये आपस में होना उत्तम कुल के लडके और लडकियों का विवाह चाहिये । नोबूहेकपिलां कन्यां नाधिकाह्न न रोगिी । नालोमिक नातिलोमां न बाचटान्न पिहला । मनु० ३। ८ ॥ न पीले लम्, वर्णवाली न आधिकाझी अत् पुरुष से चौड़ी अधिक वस्त- ? वाली, न रोगयुक्तान लोमरहित, न बहुत लोवाली, न वकबष्ट करनेहारी और न और नेनवाल है। नचंदृक्षनदीनान नान्त्य पर्वतसिका । न पच्यहिष्यनागनीं न च भीषणनामिका ॥ मनु०३ । 6 ॥