पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९४

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कर दिया कि हम किसी के साथ ही किया चढथसमुलसः ? ८१ होती है ॥ १ ॥ दशवें वर्ष तक विवाह न करके रजस्वला कन्या को देख के - ? के माता पिता और बहु भाई ये तीनों नरक में गिरते हैं । ( उचर ) ब्रह्मावाव । ' एकदणा भवेद गौरी द्विक्षणेयन्तु रोहिणी ॥ त्रिक्षणा सा भवेस्कन्या इत ऊर्च रजस्वला ॥ १ ॥ माता पिता तथा भ्राता मातुलो भगिनी स्त्रका ॥ सवें ते नर याम्ति दृष्ट्र कन्या रजस्वला ॥ २ ॥ यह सद्योनिर्मित ब्रह्मापुराण का बचम है । अर्थजितने समय में परमाणु एक पलटा खाव उतने समय को क्षण कहते हैं जब कन्या जन्मे तय एक क्षण म गौरी दूसरे में रोहिणी तीसरे में कन्या और चौथे में रजस्वला होजाती है ॥ १ ॥ इस रजस्वला को देख के उसके माता, पिता, भाई, मामा और बहन सब नर क ; को जाते हैं ॥ २ ॥ ( प्रश्न ) ये श्लोक प्रमाण नहीं ( उतर ) क्यों प्रमाण 'नहीं जो ब्रह्माजी के श्लोक प्रमाण नहीं तो तुम्हारे भी प्रमाण नहीं हो सकते । प्रश्न ) बाह २ पराशर और काशीनाथ का भी प्रमाण नहीं करते (उत्तर । वाह जी वाह क्य' तुम ब्रह्माजी का प्रमाण नहीं करते, पराशर काशीनाथ से ब्रह्माजी बड़े नहीं हैं ? जो तुम ; अद्दाजी के श्लोकों को नहीं मानते तो हम भी पराशर काशीनाथ के श्लोकों को ' नहीं मानते ( प्रश्न ) तुम्हार श्लोक असंभव होने से प्रमाण नहीं क्योंकि सहस्र! अण जन्म समय ही में बीत जाते हैं तो विवाह कैसे हो सकता है और उस समय विवाह करने का कुछ पल भी नहीं दीखता ( उत्तर ) जो ह सारे श्लोक असंभव हैं तो तुम्हारे भी असंभव हैं क्योंकि आठनौ और दशवें वर्ष में भी विवाह कर ना ! निष्फल है, क्योंकि सोलह वर्ष के पश्चात् चौबीसवें वर्ष पर्यन्त विवाद होने से पुरुष का वीर्य परिपक, शरीर बलिष्ट, ली का गर्भाशय पूरा और शरीर भी बल युकहोने से सन्तान उत्तम होते हैं * से आठवें वर्ष की कन्या में सन्तानोत्पत्ति ।

  • उश्चित समय से न्यूत आयुवरले की पुरुष को गर्भधान में मुनिवर धन्व

न्तरिजी सुश्रुत में निषेध करते ऊपोढशवयामप्राप्त: विंातिम् ! यद्याधने (मात्र गर्भ कुकिंस्थव विद्य॥ १ ॥ ११