पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९९

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साधेप्रकाश: 11 ६ ६ पूवत ह्यक्ष, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेवय और अतिथिय यजैश्व ) अग्निष्ठो• ! मांट्ठिय, विद्वानों का स, सत्कार, सत्यभ ष ए, परोपकारदि सफ़र्म और सम्पूर्ण प्र शिल्पविद्यादि पढ़ के दुष्टाचार छोड श्रेप्टाचार में वर्द्धने से ( इयम् ) यह ( तनुः ) शरीर ( त्राही ने ब्राह्मण का ( क्रियते ) किया जाता है । क्या इस श्लोक को तुम ! नहीं मानते ? मानते हैं, फिर क्यों रज वीर्य के योग से वर्णव्यवस्था मानत हो ? मैं अकेला नहीं मानता किन्तु वहुनसे लोग परम्परा से ऐसा ही मानते हैं : ( प्रश्न । क्या तुम परम्परा का भी खण्डन करोगे ? ? उचा ) नही परन्तु तुम्हारी उलटी सस का नk। मन के खण्डन भी करत हैं ( मत ) ही उलट अगेर तुम्हार सुधीं । मम है इससे क्या प्रमाण ' ( उत्तर । यही प्रमःण है कि जो तुम पांच सात पीढ़ियों के वर्तमान को सनातन व्यवहार मानते हो और हम वद तथा मृष्टि के आरम्भ से आजपर्यन्त की परम्मत मानते हैं देखो कि मका पिता श्रेष्ट वह पुत्र दुष्ट और जिप 3 का पुत्र भ्रष्ट व पिता दुष्ट तथा कई ट्रेनों भ्रष्ट का दुष्ट दृदी स त दे इसtलय तुम लाग भ्रम में पड़े हो देखा सलु महाराज ने क्या कहां हैं? येलास्य पितरण या येन याता पितामहT: । N तेल यायता मार्ग मेन गच्छ रयत ! मनु० ४ 1 १७८ है। जिस मार्ग से इसके पिता, पितामह चले हों म सारों से सन्तान भी चलें परन्तु | ( सता ) जो सत्पुरुष पितापितामह हों उन्ही के मार्ग में चलें और जो पितापिता मह टुष्ट हों तो उनके मार्ग में कभी न चले क्योंकि उत्तम धमा पुरुषों के मार्ग में चलने से क्षु ख कभी नहीं होता इस को तुम मानते हो वो नहीं ? हां २ मानते हैं । i और देखो जो परमेश्वर की प्रकाशित वेदोक्त बात है वही सनातन और उसके विरुद्ध हैं वह सनातन कभी नहीं हो सकती ऐसा ही सब लोगों को मानना चाहिये या नहीं है ? अवश्य चाहिये । जो ऐसा न माने उससे कहो कि किसी का पिता दरिद्र और उस का पुत्र धनाढय होवे तो क्या अपने पिता की दृरिद्रावस्था के आभमन से धन को फ्रैंक बेचे ! क्या जिसका पिता अन्धा हो उसका पुत्र भी अपनी आंखों को फोटलेव ! जिसका पिता कुक5ीं ो क्या उसका पुत्र भी कुकर्म को ही करे !नहीं ३ किन्तु जो २ ! शुरू के उचम 5 में हों उनका सेवन और दड़ व म का त्याग कर देना व को ।