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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/२२

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समर-यात्रा
 


चाहती, बद-सूरत स्वाधीनता चाहती हूँ। वह मुझे अबकी ज़बरदस्ती पहाड़ पर ले गये। वहाँ की शीत मुझसे नहीं सही जाती, कितना कहा कि मुझे मत ले जाओ मगर किसी तरह न माने । मैं किसी के पीछे-पीछे कुतिया की तरह नहीं चलना चाहती।

(मिसेज़ बोस उठकर खिड़की के पास चली जाती हैं।)

कानूनी-अब मुझे मालूम हो गया कि तलाक का बिल असेम्बली में पेश करना पड़ेगा।

ऐयर-खैर, आपको मालूम तो हुआ । मगर शायद कयामत में? कानूनी-नहीं मिसेज़ ऐयर, अबकी छुट्टियों के बाद ही यह बिल पेश होगा और धूम-धाम के साथ पेश होगा। बेशक पुरुषों का अत्याचार बढ़ रहा है। जिस प्रथा का विरोध आप दोनों महिलाएँ कर रही हों, वह अवश्य हिन्दू समाज के लिए घातक है ; अगर हमें सभ्य बनना है तो सभ्य देशों के पदचिन्हों पर चलना पड़ेगा। धर्म के ठीकेदार चिल्ल-पों मचायेंगे, कोई परवाह नहीं। उनकी ख़बर लेना आप दोनों महिलाओं का काम होगा। ऐसा बनाना कि मुंह न दिखा सकें।

लेडी ऐयर–पेशगी धन्यवाद देती हूँ। ( हाथ मिलाकर चली जाती है।)

मिसेज़ बोस-(खिड़की के पास आकर ) आज इसके घर में घी का चिराग जलेगा। यहां से सीधे बोस के पास गई होगी। मैं भी जाती हूँ।

(चली जाती है)

(कानूनी कुमार एक कानून की किताब उठाकर उसमें तलाक की व्यवस्था देखने लगता है कि मि० आचार्या आते हैं। मुँह साफ, एक आँख पर ऐनक,खाकी आधा बाँह का शर्ट, निकर, ऊनी मोजे, लंबे बूट। पीछे एक छोटा टेरियर कुत्ता भी है।)

कानूनी-हल्लो मि० आचार्या, आप खूब आये, आज किधर की सैर हो रही है ? होटल का क्या हाल है ?

आचार्या-कुत्ते की मौत मर रहा है। इतना बढ़िया भोजन, इतना साफ़-सुथरा मकान, ऐसी रोशनी, इतना आराम, फिर भी मेहमानों का< br>