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समर-यात्रा
 


भेज सकता है, अगर वह ज़बरदस्ती विवाह की उम्र नियत कर सकता है, अगर वह ज़बरदस्ती बच्चों को टीका लगवा सकता है, तो वह ज़बरदस्ती पुरुष को घर में बन्द भी कर सकता है, उनकी आमदनी का आधा स्त्रियों को दिला भी सकता है। तुम कहोगे पुरुष, को कष्ट होगा। ज़बरदस्ती जो काम कराया जाता है, उसमें करनेवाले को कष्ट होता है। तुम उस कष्ट का अनुभव नहीं करते ; इसी लिए वह तुम्हें नहीं अखरता। मैं यह नहीं कहती कि सुधार ज़रूरी नहीं है। मैं भी शिक्षा का प्रचार चाहता हूँ, मैं भी बाल-विवाह बंद करना चाहती हूँ, मैं भी चाहती हूँ, बीमारियां न फैलें; लेकिन कानून बनाकर दस्ती यह सुधार नहीं करना चाहती। लोगों में शिक्षा और जागृति फैलाओ, जिसमें क़ानूनी भय के बगैर यह सुधार हो जाय। आपसे कुरसी तो छोड़ी जाती नहीं, घर से निकला जाता नहीं, शहरों की विलासिता को एक दिन के लिए भी नहीं त्याग सकते और सुधार करने चले हैं श्राप देश का। इस तरह सुधार न होगा, हाँ, पराधीनता की बेड़ी और कठोर हो जायगी।

(मिसेज़ कुमार चली जाती हैं और क़ानूनी कुमार अव्यवस्थित- चित्त-सा कमरे में टहलने लगता है ।)