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पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/२९

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पत्नी से पति

मिस्टर सेठ को सभी हिन्दुस्तानी चीज़ों से नफ़रत थी और उनकी सुन्दरी पत्नी गोदावरी को सभी विदेशी चीज़ों से चिढ़। मगर धैर्य और विनय भारत की देवियों का आभूषण है। गोदावरी दिल पर हज़ार ज़ब्र करके पति की लाई हुई विदेशी चीज़ों का व्यवहार करती थी, हालाँकि भीतर ही भीतर उसका हृदय अपनी परवशता पर रोता था। वह जिस वक्त अपने छज्जे पर खड़ी होकर सड़क पर निगाह दौड़ाती और कितनी ही महिलाओं खो खद्दर की साड़ियाँ पहने गर्व से सिर उठाये चलते देखती, तो उसके भीतर की वेदना एक ठंडी आह बनकर निकल जाती थी। उसे ऐसा मालूम होता था कि मुझसे ज्यादा बदनसीब औरत संसार में नहीं है। मैं अपने स्वदेशवासियों की इतनी भी सेवा नहीं कर सकती! शाम को मिस्टर सेठ के आग्रह करने पर वह कहीं मनोरंजन या सैर के लिए जाती, तो विदेशी कपड़े पहिने हुए निकलते शर्म से उसकी गर्दन झुक जाती थी। वह पत्रों में महिलाओं के जोश भरे व्याख्यान पढ़ती, तो उसकी आँखें जगमगा उठतीं, थोड़ी देर के लिए वह भूल जाती कि मैं यहाँ बन्धनों से जकड़ी हुई हूँ।

होली का दिन था, आठ बजे रात का समय। स्वदेश के नाम पर बिके हुए अनुरागियों का जुलूस आकर मिस्टर सेठ के मकान के सामने रुका और उसी चौड़े मैदान में विलायती कपड़ों की होलियाँ लगाने की तैयारियाँ होने लगीं। गोदावरी अपने कमरे में खिड़की पर खड़ी यह समारोह देखती थी और दिल मसोसकर रह जाती थी। एक वह हैं, जो यों ख़ुश-ख़ुश, आज़ादी के नशे से मतवाले, गर्व से सिर उठाये होली लगा रहे हैं, और एक मैं हूँ कि पिंजड़े में बन्द पक्षी की तरह फड़फड़ा रही हूँ। इन तीलियों को कैसे तोड़ दूँ? उसने कमरे में निगाह दौड़ाई। सभी चीज़ें विदेशी थीं। स्वदेश का एक सूत भी न था। यही चीज़ें वहाँ जलाई जा रही थीं और वही चीज़ें यहाँ उसके हृदय में संचित ग्लानि की भाँति संदूकों में रखी हुई थीं। उसके जी