पृष्ठ:समर यात्रा.djvu/६३

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शराब की दूकान
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इस पर एक नौजवान मेम्बर ने कहा-मैं सभापतिजी से निवेदन करूँगाःकि मिसेज सकसेना को यह काम देकर आप हिंसा का सामान कर रहे हैं।इससे यह कहीं अच्छा है कि आप मुझे यह काम सौंपें।

मिसेज़ सकसेना ने गर्म होकर कहा-आपके हाथों हिंसा होने का डर और भी ज्यादा है।

इस नौजवान मेम्बर का नाम था जयराम।एक बार एक कड़ा व्याख्यान देने के लिए जेल हो पाये थे ; पर उस वक्त उनके सिर गृहस्थी का भार न था। कानून पढ़ते थे। अब उनका विवाह हो गया था,दो-तीन बच्चे भी हो गये थे, दशा बदल गई थी। दिल में वही जोश, वही तड़प, वही ददै था ; पर अपनी हालत से मज़बूर थे।

मिसेज़ सकसेना की ओर नम्र आग्रह से देखकर बोले-आप मेरी ख़ातिर से इस गन्दे काम में हाथ न डालें। मुझे एक सप्ताह का अवसर दीजिए। अगर इस बीच में कहीं दंगा हो जाय, तो आपको मुझे निकाल देने का अधिकार होगा।

मिसेज़ सकसेना जयराम को खूब जानती थीं। उन्हें मालूम था कि यह त्याग और साहस का पुतला है और अब तक सिर्फ परिस्थितियों के कारण पीछे दबका हुआ था। इसके साथ ही वह यह भी जानती थीं कि इसमें वह धैर्य और बर्दाश्त नहीं है,जो पिकेटिंग के लिए लाजमी है। जेल में उसने दारोगा को अपशब्द कहने पर चांटा लगाया था और उसकी सज़ा तीन महीने और बढ़ गई थी। बोलीं-आपके सिर गृहस्थी का भार है। मैं, घमण्ड नहीं करती ; पर जितने धैर्य से मैं यह काम कर सकती हूँ, आप नहीं कर सकते।

जयराम ने उसी नम्र आग्रह के साथ कहा-आप मेरे पिछले रेकार्ड पर फैसला कर रही हैं। आप भूलती जाती हैं कि आदमी की अवस्था के साथ उसकी उद्दडता घटती जाती है।

प्रधान ने कहा-मैं चाहता हूँ, महाशय जयराम इस काम को अपने हाथों में लें।